रणनीति व्यापार

तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण

तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण

वित्तीय विवरण विश्लेषण का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं तकनीक

फिने तथा मिलर के शब्दों में “वित्तीय विश्लेषण में निश्चित योजनाओं के आधार पर तथ्यों को विभाजित करने, परिस्थितियों के अनुसार, उसकी वर्ग रचना तथा सुविधाजनक सरल पठनीय एवं समझने लायक रूप में उन्हें प्रयुक्त करने की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं।”

स्पाइसर तथा पेगलर के अनुसार “लेखों के निर्वचन को वित्तीय समंकों को इस प्रकार अनुवाद करने की कला एवं विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, ताकि जिससे व्यवसाय की आर्थिक तथा कमजोरी सकारण प्रकट हो सके।”

वित्तीय विवरण विश्लेषण के उद्देश्य

  1. वित्तीय विवरण विश्लेषण के सामान्य उद्देश्य
  2. वित्तीय विवरण विश्लेषण के विशिष्ट उद्देश्य

वित्तीय विवरण विश्लेषण के सामान्य उद्देश्य -

  1. लाभदायकता (Profitability)
  2. सुरक्षा एवं शोधन क्षमता (Security and Solvency)
  3. वित्तीय शक्ति (Financial Strength)
  4. प्रवृत्ति (Trend)
  5. स्वामित्व या प्रबन्धन क्षमता (Ownership or Managerial Capacity)
  6. सूचनाओं का प्रकटीकरण (Disclosure of Information)

वित्तीय विवरण विश्लेषण के विशिष्ट उद्देश्य -

  1. अंशधारियों या विनियोगकर्ता के उद्देश्य
  2. अंशधारियों या विनियोगकर्ता के उद्देश्य
  3. ऋणदाताअेां द्वारा विश्लेषण के उद्देश्य
  4. सरकार द्वारा विश्लेषण का उद्देश्य
  5. कर्मचारियों का उद्देश्य
  6. वित्तीय संस्थाओं जैसे-बैंक, बीमा कम्पनी द्वारा विश्लेषण का उद्देश्य संस्था
  7. अन्य पक्ष

वित्तीय विवरण विश्लेषण की विधि

  1. विश्लेषण सीमा का निर्धारण - विश्लेषण का कार्य आर्थिक स्थिति का ज्ञान, उपार्जन क्षमता का ज्ञान, ऋण वापसी की क्षमता का ज्ञान, संस्था की भावी सम्भावना का ज्ञान आदि से सम्बन्धित हो सकता है। यदि विश्लेषण के अध्ययन केकी सीमा आर्थिक स्थिति का ज्ञान हे,तो इसके लिए उसे स्थिति विवरण का अध्ययन करना ही पर्याप्त होगा, यदि उसकी अध्ययन सीमा उपार्जन क्षमता है तो उसे लाभ-हानि खाते का भी अध्ययन करना होगा और यदि उसकी अध्ययन सीमा कम्पनी की भावी सम्भावनाओं का अनुमान है तो उसे पिछले कई वर्षों के लेखे विवरणों के साथ-साथ संचालक के प्रतिवेदनों तथा अध्यक्ष के भाषणों का भी अध्ययन करना पड़ेगा।
  2. वित्तीय विवरणों का अध्ययन करना - एक बार जब विश्लेषण की सीमा का निर्धारण हो जाता है तब उसके बाद आवश्यक वित्तीय विवरणों का सम्पूर्ण अध्ययन किया जाता है।
  3. अत्यन्त आवश्यक सूचनाओं का संकलन- वित्तीय विवरणों के अध्ययन के साथ -ही -साथ यदि विश्लेषक को कुछ अन्य सूचनाएं जैसे-प्रबन्धकों से प्राप्त होने वाली उपयोगी सूचनाएं, बाह्य पत्र-पत्रिकाओं में छपी जानकारी आदि भी आवश्यक हो तो उन्हें संग्रहित किया जाता है।
  4. वित्तीय विवरणों का पुनर्विन्यासन - सूचनाओं के संग्रह के उपरान्त वित्तीय विवरणों में प्रदश्रित मौलिक अंकों को अलग-अलग वर्गों से उचित तथा स्पष्ट रूप से विभाजित किया जाता है। मौलिक अंकों को पुनर्विन्यासित करते समय उन्हें निकटतम (Approximate) अंकों में जमाया जाता है। कई बार इन्हें प्रतिशत के रूप में जमाया जाता है, कई बार सम्पूर्ण राशि निकटतम हजार या लाख रूपयों में जमा ली जाती है,ऐसा करने में समंकों की जटिलता दूर हो जाती है तथा अध्ययन का कार्य सरल हो जाता है।
  5. तुलना करना - पुनर्विन्यासन के बाद विभिन्न मदों से आपसी तुलना की जाती है। तुलना का आधार केवल एक वर्ष के समंक हो सकते हैं तथा पिछले कई वर्षों के समंक भी हो सकते हैं। यदि दो कम्पिन्यों की परस्पर तुलना करनी हो तो दो कम्पनियों के समंक भी लिए जा सकते हैं। सम्पूर्ण उद्योग का अध्ययन क्षेत्र होने पर अनेक कम्पनियों के समंकों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।
  6. प्रवृत्ति का अध्ययन - उपर्युक्त अध्ययन से व्यवसाय के क्रमिक विकास या पतन की प्रवृत्ति ज्ञात की जाती है। प्रवृत्ति के अध्ययन से व्यवसाय से गत कई वर्षों में हुए परिवर्तनों का पता लग जाता है एवं प्रवृत्ति के आधार पर पूर्वानुमान लगाना सरला हो जाता है।
  7. निर्वचन - उपर्युक्त वर्णित विधि के आधार पर व्याख्या करके अपने अध्ययन क्षेत्र के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाले जाते हैं। निष्कर्ष निकालने की इस क्रिया को निर्वचन कहा जाता है।
  8. प्रस्तुतिकरण - जब निर्वचन से निष्कर्ष प्राप्त हो जाते हैं तो इन निष्कर्षों को सुव्यवस्थित रूप से प्रबन्धकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसे लेखा समंकों का प्रस्तुतीकरण (Presentation), प्रतिवेदन (Reporting), या सूचित करना (Communications) भी कहते हैं।

वित्तीय विवरण विश्लेषण की तकनीक

  1. तुलनात्मक वित्तीय विवरण (Comparative Financial Statements),
  2. समानाकार वित्तीय विवरण (Common size Financial Statements)
  3. प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis)
  4. अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis)
  5. कोष प्रवाह विश्लेषण (Fund-flow Analysis)
  6. रोकड़ प्रवाह विश्लेषण (Cash-flow Analysis)
  7. सम-विच्छेद विश्लेषण (Brek even Analysis)

तुलनात्मक वित्तीय विवरण -

  1. निरपेक्ष अंक (मुद्रा मूल्य में या रूपयों में)
  2. वृद्धि या कमी को प्रतिशतों के रूप में प्रकट करना
  3. वृद्धि या कमी को निरपेक्ष संस्थाओं में व्यक्त करना।

समानाकार वित्तीय विवरण -

तुलनात्मक वित्तीय विवरणों के अन्तर्गत विभिन्न मदों का कुल सम्पत्तियों कुछ दायित्वों, कुल स्वामियों की समता तथा कुल विक्री में होने वाले परिवर्तनों को नहीं दर्शाया जाता है, जिससे उसकी तुलना अन्य कम्पनियों से या सम्पूर्ण उद्योग से नहीं की जा सकती है। इस कमी को दूर करने के लिए ही समानाकर वित्तीय विवरण का निर्माण किया जाता है। कैनेडी एवं मैकमूलन के अनुसार “यदि स्थिति विवरण एवं आय विवरण के समंकों को विश्लेषणात्मक प्रतिशतों के रूप में अर्थात् कुल सम्पत्तियों, कुल दायित्वों, स्वामित्व समता तथा कुल शुद्ध बिक्री के अनुपात में दिखाया जाए तो तुलना के लिए एक समान आधार तैयार हो जाता है। इस प्रकार तैयार किए गये विवरणों को समानाकार वित्तीय विवरणों के नाम से जाना जाता है।

प्रवृत्ति विश्लेषण -

  1. प्रवृत्ति प्रतिशत (Trend Percentages)
  2. प्रवृत्ति अनुपात (Trend Ratios)
  3. ग्राफ एवं चित्रमय प्रस्तुतीकरण (Graphic & Diagrammatic Representation)

अनुपात विश्लेषण

वित्तीय विवरणों के विलेषण में अनुपात विश्लेषण का विशेष महत्व है। इसमें विभिन्न प्रकार के वित्तीय अनुपातों की गणना की जाती है, जिनके माध्यम से महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस विश्लेषण के माध्यम से संस्थान की तरलता स्थिति कार्यशीलता एवं कार्यकुशलता, लाभदायकता तथा पूंजी संरचना आदि की जांच की जाती है।

कोष प्रवाह

विश्लेषण किसी सस्था के दो स्थिति विवरणों के बीच संस्था के कोषों में परिवर्तन के अध्याय के लिए जो विवरण तैयार किया जाता है उसे कोष प्रवाह विवरण कहते हैं। इसके द्वारा हमें इस बात की जानकारी मिलती है कि संस्थान में संसाधन (Sources) कहां-कहां से प्राप्त हुए हैं तथा उनका उपयोग (Uses) किन-किन कार्यों में किया गया है।

रोकड़ प्रवाह

विश्लेषण रोकड़ प्रवाह विवरण के अन्तर्गत नकद के विभिन्न स्रोतों एवं उपयोगों का विश्लेषण किया जाता है। इसके माध्यम से यह ज्ञात किया जाता है कि रोकड़ राशि किन-किन साधनों से प्राप्त हुई तथा किन-किन मदों पर व्यय की गई है।

सम-विच्छेद

विश्लेषण सम-विच्छेद विश्लेषण एक ऐसी तकनीक है जिसके अन्तर्गत उत्पादन की एक निश्चित मात्रा के विक्रय करने पर उत्पादन कोन लाभ होता है न हानि। इसके अन्तर्गत लागतों को स्थायी एवं परिवर्तनशील श्रेणी में विभक्त कर दिया जाता है तथा लागत, लाभ एवं विक्रय के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इस तकनीक के माध्यम से प्रबन्धक उत्पादन मूल्य निर्धारण विक्रय नीति, लाभ नीति के निर्धारण में मदद मिलती है।

Replacement Analysis of Equipment’s

After reading this article you will learn about:- 1. Introduction to Equipment Replacement Analysis 2. Reasons for Replacement of Equipment 3. Policy 4. Guidelines 5. Hire-Purchasing.

Introduction to Equipment Replacement Analysis:

Equipment replacement decision plays an important role in the economic running of any concern for years or decades.

A firm has to face three types of replacement decisions:

(a) The replacement of capital equipment, as it wears out or becomes obsolete.

(b) The capital equipment required for expansion.

(c) The displacement of old technology by the new, i.e. the introduction of an improved equipment in the market which may produce cheaper products. It is also known as replacement of obsolete equipments.

Equipments are used तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण to produce products at profitable rate, so that the products can stand competition. Replacement decision is not an easy job, it requires several considerations. As it involves large capital investment, hence a wrong decision may adversely effect the profitability of whole concern. Therefore, a scientific approach to solve तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण such problems is essential.

Reasons for Replacement of Equipment:

The main reasons are:

(c) Inadequacy, and

(d) Working conditions.

(а) Deterioration:

It becomes necessary to replace the machine when it wears out and does not function properly. Such machinery start lowering the quality of product, decreasing the production and increase in labour and maintenance costs.

(b) Obsolescence:

Whenever new equipment comes in the market, which is capable of producing more products of good quality with less labour and has more efficiency, the existing machine is to be replaced with this machine, although it was functioning well.

Generally this is necessitated because the products manufactured by new machine will be cheaper.

(c) Inadequacy:

With the change of product design to meet the customers demand or quan­tity to be manufactured, old machinery becomes inadequate and, therefore, calls for तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण different manufacturing equipment.

(d) Working Conditions:

To take replacement decision, working conditions are also re­sponsible. Machinery yielding more smoke or noise (unpleasant conditions) and hazardous to work may cause pollution and accidents. Similarly, worker may not like to work on an old machinery because of hazardous nature of a particular process. Such machinery needs replace­ment.

Equipment Replacement Policy:

Sometimes a manufacturer has to face a problem of replacing the equipment, since this is a continuous process and, therefore, a set system for this must be evolved. The main consider­ation is “when to replace” but this when requires many considerations to reach at suitable conclusion.

Large number of factors are responsible to replace the equipment before the expiry of the estimated life, some of them are:

(i) To reduce production cost,

(ii) To reduce fatigue,

(iii) To raise quality,

(तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण iv) To increase output, and

(v) To secure greater convenience, safety and reliability.

Guidelines for Replacement Analysis:

There are certain rules which may be used as guidelines for replacement analysis:

1. For Equipment in Use:

(a) Do Consider:

(i) Operating cost.

(ii) Repair and maintenance cost.

(iii) Down time cost.

(iv) Salvage value.

(v) Rebuilding cost.

(b) Do not Consider:

(i) Original cost.

(ii) Money already spent on repairs and maintenance.

(iii) Unrealistic book value.

2. For New Equipment:

(a) Do Consider:

(ii) Interest on capital investment.

(iii) Salvage value at the end of useful life.

(iv) Cost advantage of improved product.

(v) Labour savings.

(b) Do not Consider:

(i) Any savings not clearly assessable.

(ii) Overhead charges.

Capital Recovery:

Capita) recovery of an equipment is the paying for itself.

“Capital recovery period”, is the time for the “pay off” period during which time any invest­ment in the new equipment must “pay for itself”.

In replacement studies, the matter of equivalence should be considered. Because of the “interest”, a rupee today is not a rupee next year. Hence, Rupees must be converted into their value at particular time before they are truly comparable.

Hire-Purchasing:

Machines can be procured either by purchasing (i.e. paying full cost in cash) or on hire- purchase basis. In this second method (i.e. hire-purchasing) rental payments are adjusted to­wards the purchased price. In this way purchaser does not loose the money he has paid out in rent.

This system is now-a-days being preferred by small entrepreneur, who wants to start a small scale industry and do not have much money. Example of such system is that National Industries Corporation supplying machinery on hire-purchase basis to Small Scale Industries. Although some interest is charged on this.

Following are some of the important advantages of the hire- purchase sys­tem:

1. Small entrepreneur can expand his production facilities without increasing his finan­cial burden.

2. Purchaser can use the equipment without paying the full purchase price at the time of procurement, thereby avoiding any loans or other debt.

3. This system allows the owner to use his funds for other important works like research, design, inventory, better wages etc.

Disadvantages:

Following are some of the disadvantages of hire-purchase system:

1. Some owners feel prestige in owning their machinery and they directly purchase the machines. Thus psychological aspect is a disadvantage.

2. Generally the firms charge high amount of interest (or profit) on the machines sold on hire-purchase system. Thus purchaser has to pay more price in this system.

3. Highly technical and specialised equipment’s are generally not available on hire-pur­chase system.

प्रबंध लेखाकन के उपकरण एवं तकनीक अथवा प्रणालियां - Tools and Techniques or System of Management Accounting

प्रबंध लेखाकन के उपकरण एवं तकनीक अथवा प्रणालियां - Tools and Techniques or System of Management Accounting

प्रबन्ध को अपने कार्यों का कुशलतापूर्वक निष्पादन करने के लिए अनेक प्रकार की सूचनाओं की आवश्यकता होती है। प्रबंध लेखाकन एक अकेला ऐसा यन्त्र नहीं है जो प्रबंधकों की लेखांकन सूचना संबंधी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। प्रबंध लेखांकन अलग से कोई पद्धति नहीं है, बल्कि यह तो अनेक पद्धतियों को सम्मिश्रण एवं समन्वय है। अतः लेखांकन सूचना को अत्यंत प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने हेतु प्रबंध लेखांकन में निम्नलिखित उपकरणों एवं तकनीको का प्रयोग किया जाता है

(1) वित्तीय नीति एवं नियोजन (Financial Policy and Planning) - वित्तीय नियोजन से आशय किसी संस्था के लिए आवश्यक पूंजी की कुल राशि का पूर्वानुमान लगाना तथा उसके स्वरूप के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया से है। प्रत्येक संस्था को कोश प्राप्त करने के संबंध में निर्णय लेना पड़ता है।

ये कोश अंश पूंजी निर्गमन द्वारा या ऋण लेकर प्राप्त किए जा सकते हैं। यह भी निर्णय करना पड़ता है कि अंश पूंजी किस प्रकार की अर्थात् समता अश पूजी या पूर्वाधिकार अंश पूजी होगी। इसी प्रकार ऋण दीर्घ-कालीन होंगे या अल्प कालीन, इसका भी निर्धारण नीति-विषयक समस्या होती है। कुल प्राप्त किए जाने वाले कोश में अंश पूंजी तथा ऋण का क्या अनुपातिक भाग होगा, इसे निश्चित करना भी प्रबंधकीय निर्णयन का कार्य है। ये सभी निर्णय महत्वपूर्ण होते है जिसमें प्रबंधकीय लेखांकन वित्तीय नियोजन की तकनीक के माध्यम से निदान प्रस्तुत करता है।

(2) वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting) वित्तीय लेखांकन से प्राप्त सूचना के आधार पर ही वित्तीय विवरणों का विश्लेषण किया जाता है तथा संबंधित पक्षकारों के लिए अनेक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

अतः प्रबंध लेखाकन के लिए सुव्यवस्थित वित्तीय लेखांकन पद्धति का होना आवश्यक है क्योंकि यह प्रबंध लेखांकन की आधारशिला होती है।

(3) वित्तीय विश्लेषण ( Financial Analysis ) – वित्तीय विश्लेषण का आशय वित्तीय विवरणो लाभ-हानि, खाता एवं चिटठा में प्रस्तुत किए गए परिणामों को किसी वैज्ञानिक विधि से सुविधाजनक भागों में बाटकर उनसे अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकालना है। वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का उद्देश्य समको का इस प्रकार से वर्गीकरण तथा प्रस्तुतिकरण करना है कि ये प्रबंध के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके। वित्तीय विवरणों के विश्लेषण की तकनीकों में तुलनात्मक वित्तीय विवरण, अनुपात विश्लेषण, कोष प्रवाह विवरण, रोकड़ प्रवाह विवरण, प्रवृत्ति विश्लेषण आदि शामिल है।

(4) पुनर्मूल्यांकन लेखांकन ( Revaluation Accounting) इसे पुनर्स्थापन लेखांकन भी कहते हैं। इसका आशय उन रीतियों से है जिसका प्रयोग बढ़ते हुए मूल्यों की अवधि में स्थायी सम्पत्तियो पुनर्स्थापन से संबंधित समस्याओं को हल करने में किया जाता है। इसका उद्देश्य इस बात का विश्वास दिलाना है कि सस्था की पूजी सुरक्षित रखी गई है। अर्थात् मूल्य परिवर्तन का प्रभावों खातों में समायोजन कर लिया गया है तथा लाभों की गणना भी इसी आधार पर की गई है।

(5) बजटरी नियंत्रण (Budgetary Control) यह एक ऐसी प्रणाली है जिसे बजटों का नियोजन तथा नियंत्रण के लिए प्रयोग किया जाता है। सभी कार्यात्मक विभागों के लिए पहले से ही बजट अग्रिम तैयार कर लिए जाते हैं। ये बजट ऐतिहासिक आंकड़ों तथा भावी संभावनाओं पर आधारित होते हैं।

वास्तविक उपलब्धियों को लेखबद्ध कर लिया जाता है तथा पूर्व निर्धारित लक्ष्यों से इनकी तुलना की जाती है तथा विभागीय कार्यकलापों को बजट के अनुकूल रखने का प्रयास किया जाता है।

( 6 ) प्रमाप लागत विधि (Standard Costing) प्रमाप लागत विधि लागतो पर नियंत्रण हेतु प्रबंध लेखांकन की एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है। प्रमाप लागत लेखांकन प्रणाली में लागत के विभिन्न तत्वों के संबंध में प्रमाप निर्धारित किए जाते हैं। प्रमाप लागत का निर्धारण चालू दशाओं के व्यवस्थित विश्लेषण पर आधारित होता है। वास्तविक लागतों का अभिलेखन किया जाता है तथा प्रमाप लागतों से इनकी तुलना की जाती है। यदि कोई विचरण पाए जाते हैं तो उनका विश्लेषण किया जाता है और उनके लिए उत्तरदायी कारणों का पता लगाया जाता है।

इस प्रकार प्रमाप लागत विधि संस्था की कार्य कुशलता को बढ़ाने में सहायक होती है एवं यह अपवाद द्वारा प्रबंध को सभव बनाती है।

(7) सीमांत लागत विधि (Marginal Costing) प्रबंध लेखांकन की इस तकनीक के अंतर्गत उत्पादन की कुल लागतों को परिवर्तनशील तथा स्थिर, दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक लागत केन्द्र पर केवल परिवर्तनशील व्यय एकत्र (accumulate) किये जाते हैं। स्थिर लागतों को उस अवधि की बिक्री से प्राप्त आय में से घटाया जाता है जिसमें ये उदय होते हैं। सीमांत लागत-विधि प्रबंध को निर्णय लेने में बहुत सहायक होती है।

(8) निर्णयन लेखांकन (Decision Accounting) निर्णय लेने का अर्थ किसी कार्य को करने के विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करने से है। वस्तुतः निर्णयन लेखांकन कोई पद्धति नहीं है

वरन् यह एक प्रक्रिया है जिससे प्रबंध किसी कार्य के लाभ को अधिकतम व हानि को न्यूनतम करने का प्रयास करता है। इसके लिए सीमांत विश्लेषण, वृद्धिशील विश्लेषण (Incremental (Analysis), सम-विच्छेद विश्लेषण, लाभ- मात्रा विश्लेषण आदि तकनीके तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण प्रयोग की जाती हैं। प्रबंधकीय लेखा-विधि की इन तकनीकों के आधार पर निर्णय लेने से प्रयोग और त्रुटि (Trail and Error) की अवैज्ञानिक विधि के दोषों से बचा जा सकता है।

(9) नियन्त्रण लेखांकन (Control Accounting) नियन्त्रण लेखांकन कोई पृथक प्रणाली नहीं है विभिन्न प्रणालियों में नियंत्रण युक्तिया होती है और इन्हें ही नियंत्रण लेखांकन में प्रयुक्त किया जाता है।

सामान्यतः प्रमाप लागत विधि एवं बजटरी नियंत्रण दोनों ही अपने-अपने तरीके से अर्थात् विचरण विश्लेषण, प्रतिवेदन विवरण व अनेक क्रियाओं द्वारा लागतो, व्यय व अन्य मदों पर नियंत्रण रखने का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त नियंत्रण लेखांकन में आंतरिक जांच अंकेक्षण (internal audit), वैज्ञानिक अंकेक्षण आदि का नियंत्रण उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रभावपूर्ण लागत नियंत्रण के लिए उत्तरदायित्व लेखा-विधि की तकनीक का भी प्रयोग किया जाता है।

( 10 ) वित्तीय प्रतिवेदन ( Financial Reporting) - वित्तीय प्रतिवेदन से तात्पर्य व्यवसाय के कार्य- परिणामों तथा अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में प्रबंध को सूचना प्रदान करने से है। इसके लिए प्रतिवेदन, विवरण, बिंदु रेखीय व चित्रमय प्रदर्शन एवं चार्ट आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है।

(11) क्रियात्मक अनुसंधान एवं सांख्यिकीय विधियां (Operational Research and Statistical Techniques) – गत कुछ वर्षों से प्रबंध संबंधी समस्याओं को हल करने में क्रियात्मक अनुसंधान एवं सांख्यिकीय विधियों का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। प्रायिकता सिद्धांत (Probability), प्रतिचयन सिद्धांत (Sampling Theory), रेखीय कार्यक्रम (Linear Programming) क्रीडा सिद्धांत एवं पंक्ति सिद्धांत (Game Theory and Queuing Theory), अनुरूपन सिद्धांत (Simulation Theory) आदि इस क्षेत्र की प्रमुख तकनीकें है।

आईटी टूल्स - क्यूआर, ऐप, पोर्टल

BEE का उद्देश्य स्टार लेबल को प्रस्तुत करने की वर्तमान प्रणाली में QR कोड को लागू करना है। एक उपकरण पर स्टार लेबल एक उपभोक्ता को एक उपकरण के प्रदर्शन को जानने में सक्षम बनाता है, अंततः उपभोक्ता को खरीद के समय लागत और ऊर्जा की बचत क्षमता पर सूचित निर्णय लेने में मदद करता है। एस एंड एल योजना के तहत हर उपकरण पर यूनीक क्यूआर कोड को अपनाने के साथ, बीईई बाजार में उपयोग किए जाने वाले लेबल की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना चाहता है, ताकि उपभोक्ता को पुनः प्राप्त करने और तकनीकी विशेषताओं को प्रदर्शित करने और सत्यापित करने के लिए उपभोक्ता को सशक्त बनाने के लिए स्टार लेबल का दुरुपयोग किया जा सके स्टार लेबल पर BEE के पंजीकृत उपकरण डेटाबेस से आसानी से स्कैन या पाठ संदेश का उपयोग करके एक उपकरण पर चिपका हुआ है।
मैन्युफैक्चरर्स को बीईई स्टार लेबल वाले प्रत्येक उपकरण के लिए क्यूआर कोड को लागू करना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, क्यूआर कोड इको-सिस्टम को अपनाने से भारतीय उपकरण बाजार परिदृश्य की एक प्रासंगिक तस्वीर को चित्रित किया जाना चाहिए, क्यूआर कोड की मदद से संबंधित आपूर्ति श्रृंखलाओं में विभिन्न चरणों में उपकरणों की विभिन्न श्रेणियों में बिक्री को ट्रैक करके। इसके अलावा, यह उम्मीद की जाती है कि यह QR कोड आधारित इको-सिस्टम निर्माताओं / वितरकों / खुदरा विक्रेताओं को सक्षम करेगा, सीधे BEE डेटाबेस में मौजूदा BEE स्टार लेबल मोबाइल ऐप की मदद से उपकरणों की बिक्री लॉग ऑन करें। बीईई का उद्देश्य बीईई लेबल के विरोधी नकली को अपनाने और लागू करने और उपकरण की बिक्री पर कब्जा करने के लिए एक असफल-प्रूफ तरीके के रूप में क्यूआर कोड को तैनात करना है।

मोबाइल एप्लिकेशन:

ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) ने उपभोक्ताओं के लिए मानक और लेबलिंग (S & L) कार्यक्रम के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया है। एप्लिकेशन बीईई के एस एंड एल डेटाबेस के साथ जुड़ा हुआ है, इस प्रकार यह उपभोक्ताओं और अन्य हितधारकों से वास्तविक समय की प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। एप्लिकेशन में डेटा दैनिक अद्यतन किया जाता है।

वर्तमान में, उपभोक्ता ऊर्जा दक्षता जानकारी पर भरोसा करते हैं जो स्टार लेबल पर प्रस्तुत की जाती है। मोबाइल एप्लिकेशन उपभोक्ताओं को एक विशिष्ट वर्ग के सभी उत्पादों में व्यक्तिगत ऊर्जा बचत की तुरंत तुलना करने की अनुमति देगा और इस प्रकार उपभोक्ताओं को अधिक कुशल उत्पाद चुनने में सक्षम करेगा जो बाजार में उपलब्ध हैं।

ऐप को एंड्रॉइड और आईओएस (बीईई स्टार लेबल) पर डाउनलोड किया जा सकता है। बीईई ने ऐप के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन भी प्रकाशित किया है और एस एंड एल कार्यक्रम के तहत एक जागरूकता और आउटरीच माध्यम के साथ-साथ निर्णय लेने के लिए उपभोक्ताओं को मार्गदर्शन करने के लिए ऐप का उपयोग कर रहा है।

एप्लिकेशन की विशेषताएं

तुलना - आवेदन में उत्पादों, उनकी ऊर्जा और लागत बचत, स्टार रेटिंग आदि की तुलना करने की क्षमता है। यह सूचित निर्णय लेने में सक्षम होगा।

फिल्टर - यह उपयोगकर्ता को स्टार रेटिंग, वॉल्यूम, ऊर्जा खपत आदि जैसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर उत्पाद सूची को फ़िल्टर करने देता है, जो उत्पादों के लिए भिन्न होता है। यह उनकी खोज को सरल बनाता है क्योंकि उन्हें उत्पादों की पूरी सूची के माध्यम से स्कैन नहीं करना पड़ता है लेकिन वे इस सुविधा का उपयोग अपने खोज विकल्पों को कम करने के लिए कर सकते हैं।

स्टोर रसीदें - ऐप की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उत्पादों की रसीदों को स्टोर करने की क्षमता है, जिससे लोग भविष्य में उपयोग के लिए इसे उपयोग कर सकें। उपयोगकर्ता रसीद की एक तस्वीर क्लिक कर सकते हैं और इसे वारंटी, वार्षिक रखरखाव आदि के लिए बचा सकते हैं।

Favourites - ऐप उपयोगकर्ताओं को पसंदीदा सूची में उत्पादों को जोड़ने की अनुमति देता है जिसे वे बाद में एक्सेस कर सकते हैं यदि वे स्टोर पर चयनित उत्पादों को देखना चाहते हैं।

सेटिंग्स - यह उपयोगकर्ताओं को मौद्रिक बचत की गणना के लिए उपयोग की जाने वाली मान्यताओं को देखने की अनुमति देता है। यह उपयोगकर्ताओं को कई वर्षों की संख्या में परिवर्तन करके डिफ़ॉल्ट मानों को बदलने की अनुमति देता है जिसके लिए वे बचत, ऊर्जा लागत का पुनर्जीवन आदि के आधार पर गणना करना चाहते हैं।

फीडबैक - ऐप में मौजूदा उत्पादों पर प्रतिक्रिया, ऐप या किसी भी फीचर आदि पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता है। ऐप विश्लेषण करने या उपकरण मानकों और उपभोक्ताओं को बनाने और उन्हें इस डेटा का लाभ उठाने में सक्षम बनाने के लिए नीति का समर्थन करेगा क्रय निर्णय। इस तरह के ऐप को अपनाने से उपभोक्ताओं, उपभोक्ताओं और शोधकर्ताओं को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू उपकरणों की ऊर्जा दक्षता से भरपूर लाभ मिलेगा। एप्लिकेशन को बीईई स्टार लेबल की खोज के अनुसार प्ले स्टोर पर डाउनलोड किया जा सकता है:

कृपया बीईई हेल्प डेस्क पर संपर्क करें [email protected] और 011-26766700, किसी भी मुद्दे के लिए।

एस एंड एल वेब पोर्टल:

मानक और लेबलिंग वेब पोर्टल के लाभ निम्नानुसार हैं:

1. निर्माता अपने आवेदन ऑनलाइन दर्ज कर सकते हैं।
2. निर्माताओं द्वारा दायर आवेदनों की आसान ट्रैकिंग।
3. रिपोर्ट आसानी से डाउनलोड की जा सकती है।
4. कागजी कार्रवाई को कम करता है।
5. बीईई अनुमोदित मॉडल की सूची बीईई की वेबसाइट के साथ एस एंड एल आवेदन के लिंक के माध्यम से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है।
6. निर्माताओं और बीईई के बीच अधिक तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण प्रभावी संचार।
7. ऊर्जा की बचत का विश्लेषण और इसकी रिपोर्ट तैयार करना।
8. सुचारू संचालन के लिए एसएमएस गेटवे और पेमेंट गेटवे का एकीकरण।

आईटी टूल्स - क्यूआर, ऐप, पोर्टल

BEE का उद्देश्य स्टार लेबल को प्रस्तुत करने की वर्तमान प्रणाली में QR कोड को लागू करना है। एक उपकरण पर स्टार लेबल एक उपभोक्ता को एक उपकरण के प्रदर्शन को जानने में सक्षम बनाता है, अंततः उपभोक्ता को खरीद के समय लागत और ऊर्जा की बचत क्षमता पर सूचित निर्णय लेने में मदद करता है। एस एंड एल योजना के तहत हर उपकरण पर यूनीक क्यूआर कोड को अपनाने के साथ, बीईई बाजार में उपयोग किए जाने वाले लेबल की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना चाहता है, ताकि उपभोक्ता को पुनः प्राप्त करने और तकनीकी विशेषताओं को प्रदर्शित करने और सत्यापित करने के लिए उपभोक्ता को सशक्त बनाने के लिए स्टार लेबल का दुरुपयोग किया जा सके स्टार लेबल पर BEE के पंजीकृत उपकरण डेटाबेस से आसानी से स्कैन या पाठ संदेश का उपयोग करके एक उपकरण पर चिपका हुआ है।
मैन्युफैक्चरर्स को बीईई स्टार लेबल वाले प्रत्येक उपकरण के लिए क्यूआर कोड को लागू करना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, क्यूआर कोड इको-सिस्टम को अपनाने तकनीकी विश्लेषण के लिए प्रयुक्त उपकरण से भारतीय उपकरण बाजार परिदृश्य की एक प्रासंगिक तस्वीर को चित्रित किया जाना चाहिए, क्यूआर कोड की मदद से संबंधित आपूर्ति श्रृंखलाओं में विभिन्न चरणों में उपकरणों की विभिन्न श्रेणियों में बिक्री को ट्रैक करके। इसके अलावा, यह उम्मीद की जाती है कि यह QR कोड आधारित इको-सिस्टम निर्माताओं / वितरकों / खुदरा विक्रेताओं को सक्षम करेगा, सीधे BEE डेटाबेस में मौजूदा BEE स्टार लेबल मोबाइल ऐप की मदद से उपकरणों की बिक्री लॉग ऑन करें। बीईई का उद्देश्य बीईई लेबल के विरोधी नकली को अपनाने और लागू करने और उपकरण की बिक्री पर कब्जा करने के लिए एक असफल-प्रूफ तरीके के रूप में क्यूआर कोड को तैनात करना है।

मोबाइल एप्लिकेशन:

ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) ने उपभोक्ताओं के लिए मानक और लेबलिंग (S & L) कार्यक्रम के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया है। एप्लिकेशन बीईई के एस एंड एल डेटाबेस के साथ जुड़ा हुआ है, इस प्रकार यह उपभोक्ताओं और अन्य हितधारकों से वास्तविक समय की प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। एप्लिकेशन में डेटा दैनिक अद्यतन किया जाता है।

वर्तमान में, उपभोक्ता ऊर्जा दक्षता जानकारी पर भरोसा करते हैं जो स्टार लेबल पर प्रस्तुत की जाती है। मोबाइल एप्लिकेशन उपभोक्ताओं को एक विशिष्ट वर्ग के सभी उत्पादों में व्यक्तिगत ऊर्जा बचत की तुरंत तुलना करने की अनुमति देगा और इस प्रकार उपभोक्ताओं को अधिक कुशल उत्पाद चुनने में सक्षम करेगा जो बाजार में उपलब्ध हैं।

ऐप को एंड्रॉइड और आईओएस (बीईई स्टार लेबल) पर डाउनलोड किया जा सकता है। बीईई ने ऐप के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन भी प्रकाशित किया है और एस एंड एल कार्यक्रम के तहत एक जागरूकता और आउटरीच माध्यम के साथ-साथ निर्णय लेने के लिए उपभोक्ताओं को मार्गदर्शन करने के लिए ऐप का उपयोग कर रहा है।

एप्लिकेशन की विशेषताएं

तुलना - आवेदन में उत्पादों, उनकी ऊर्जा और लागत बचत, स्टार रेटिंग आदि की तुलना करने की क्षमता है। यह सूचित निर्णय लेने में सक्षम होगा।

फिल्टर - यह उपयोगकर्ता को स्टार रेटिंग, वॉल्यूम, ऊर्जा खपत आदि जैसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर उत्पाद सूची को फ़िल्टर करने देता है, जो उत्पादों के लिए भिन्न होता है। यह उनकी खोज को सरल बनाता है क्योंकि उन्हें उत्पादों की पूरी सूची के माध्यम से स्कैन नहीं करना पड़ता है लेकिन वे इस सुविधा का उपयोग अपने खोज विकल्पों को कम करने के लिए कर सकते हैं।

स्टोर रसीदें - ऐप की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उत्पादों की रसीदों को स्टोर करने की क्षमता है, जिससे लोग भविष्य में उपयोग के लिए इसे उपयोग कर सकें। उपयोगकर्ता रसीद की एक तस्वीर क्लिक कर सकते हैं और इसे वारंटी, वार्षिक रखरखाव आदि के लिए बचा सकते हैं।

Favourites - ऐप उपयोगकर्ताओं को पसंदीदा सूची में उत्पादों को जोड़ने की अनुमति देता है जिसे वे बाद में एक्सेस कर सकते हैं यदि वे स्टोर पर चयनित उत्पादों को देखना चाहते हैं।

सेटिंग्स - यह उपयोगकर्ताओं को मौद्रिक बचत की गणना के लिए उपयोग की जाने वाली मान्यताओं को देखने की अनुमति देता है। यह उपयोगकर्ताओं को कई वर्षों की संख्या में परिवर्तन करके डिफ़ॉल्ट मानों को बदलने की अनुमति देता है जिसके लिए वे बचत, ऊर्जा लागत का पुनर्जीवन आदि के आधार पर गणना करना चाहते हैं।

फीडबैक - ऐप में मौजूदा उत्पादों पर प्रतिक्रिया, ऐप या किसी भी फीचर आदि पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता है। ऐप विश्लेषण करने या उपकरण मानकों और उपभोक्ताओं को बनाने और उन्हें इस डेटा का लाभ उठाने में सक्षम बनाने के लिए नीति का समर्थन करेगा क्रय निर्णय। इस तरह के ऐप को अपनाने से उपभोक्ताओं, उपभोक्ताओं और शोधकर्ताओं को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू उपकरणों की ऊर्जा दक्षता से भरपूर लाभ मिलेगा। एप्लिकेशन को बीईई स्टार लेबल की खोज के अनुसार प्ले स्टोर पर डाउनलोड किया जा सकता है:

कृपया बीईई हेल्प डेस्क पर संपर्क करें [email protected] और 011-26766700, किसी भी मुद्दे के लिए।

एस एंड एल वेब पोर्टल:

मानक और लेबलिंग वेब पोर्टल के लाभ निम्नानुसार हैं:

1. निर्माता अपने आवेदन ऑनलाइन दर्ज कर सकते हैं।
2. निर्माताओं द्वारा दायर आवेदनों की आसान ट्रैकिंग।
3. रिपोर्ट आसानी से डाउनलोड की जा सकती है।
4. कागजी कार्रवाई को कम करता है।
5. बीईई अनुमोदित मॉडल की सूची बीईई की वेबसाइट के साथ एस एंड एल आवेदन के लिंक के माध्यम से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है।
6. निर्माताओं और बीईई के बीच अधिक प्रभावी संचार।
7. ऊर्जा की बचत का विश्लेषण और इसकी रिपोर्ट तैयार करना।
8. सुचारू संचालन के लिए एसएमएस गेटवे और पेमेंट गेटवे का एकीकरण।

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