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धुरी अंक के प्रकार

धुरी अंक के प्रकार
यदि वस्तु के धुरी अंक के प्रकार अंक में से प्रत्येक के अपने केंद्र के बारे में वह अपने सही प्रतिनिधित्व के भीतर है - वहाँ एक केंद्रीय समरूपता है। इसका उदाहरण इस तरह के एक सिलेंडर, क्षेत्र, सही चश्मे, आदि के रूप में ज्यामितीय शरीर है

स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-184

श्रीप्रकाश मिश्र का ‘जहाँ बाँस फूलते हैं, में उत्तर–पूर्व में व्याप्त विद्रोह और असंतोष की समस्या को उजागर करने का प्रयास किया गया है। इस उपन्यास में उपन्यासकार ने मिजोरम में व्याप्त असंतोष विक्षोभ के कराणों को पूरे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखने और समझने का प्रयास किया है। उपन्यास के धुरी अंक के प्रकार शीर्षक की ओर संकेत करते हुए लेखक लिखते हैं, "मिजोरम में जनश्रुति है कि हर पचास साल की आवृत्ति पर यहाँ के बाँस फूलते हैं। उनके बीजों को खाकर चूहे बहुत बच्चे पैदा करते हैं, जो फसल खा जाते हैं और मिजोरम में अकाल पड़ जाता है। ऐसा ही अकाल 1958 में पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप 1966 का विद्रोह हुआ।" [2] इस प्रकार लेखक ने इस उपन्यास में मिजो समाज के अंतरंग पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया है। मैत्रेयी पुष्पा का ‘अलमा कबूतरी’ जिसमें बुंदेल खंड क्षेत्र में बसने वाली कबूतरा जाति के जीवन को उपन्यास का विषय बनाकर मार्मिक रूप में चित्रण किया गया है। कबूतरा पुरूष या तो जंगल में रहता है या जेल में और स्त्रियाँ शराब की मटटियों पर या किसी की बिस्तर पर। उपन्यास का प्रमुख पारा कदमबाई अपनी बेटा को इन कार्यों को करने से नहीं रोकती और कहती है, "उसका दारू बेचना, चोरी करना, बार–बार जेल जाना. हमारी बिरादरी का कारोबार यही है, इसमें बुरा क्या है ?" [3] मैत्रेयी पुष्पा ने इस उपन्यास में कबूतरी जाति के रहन–सहन, खान–पान एवं संस्कृति की विभिन्न पहलूओं को अत्यन्त मार्मिक रूप में दर्शाया है। भगवानदास मोरवाल का ‘रेत’ उपन्यास का केन्द्र में गुरू और माँ नलिन्या की संतान कंजर और उसका जीवन हैं। कंजरयानी काननचर अंभीत जंगल में घूमने वाला। अपने लोक विश्वास व लोकचारों की धुरी पर अपनी अस्मिता और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती एक विमुक्त जनजाति है। कंजर जनजाति का इतिहास उपन्यास के इन पंक्तियों मे द्रष्टव्य हैं। "कंजर यानी कननन्वरा, काननचर अधीत जंगलों में घूमने वाला। प्राचीन भारत की सबसे प्रमुख खाना–बदोश जाति। उत्पत्ति माना गुरू और नालिन्या। मान धुरी अंक के प्रकार गुरू यानी दिल्ली के मुसलमान बादशाह के मल्लू–कल्लू नाम के दो पहलवानों को हराने वाला आदिवासी निस्फील्द के अनुसार कंजरों की सात उपजातियाँ है, किन्तु है मुख्य चार ही। अंधति कुछबंध जो झाड़ू बनाते हैं। पत्थरकट, जो पत्थर काटते हैं। जल्लाद, जो मरे हुए जानवरों धुरी अंक के प्रकार को उठाने के साथ–साथ फाँसी भी देते हैं और रच्छबंध, जो जुलाहों का करधा बनाते हैं।" [4] उपन्यास में लेखक ने संपूर्ण कंजर जातियों का सामाजिक एवं धुरी अंक के प्रकार सांस्कृतिक परिवेश को जीवन्त रूप देने का प्रयास किया है।

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