तकनीकी विश्लेषण के उत्तर

1917 की बोल्शेविक क्रांति के मुख्य कारण
1917 की बोल्शेविक क्रांति के मुख्य कारण ( 1917 ki bolshevik kranti ke mukhya karan ) : 1917 की बोल्शेविक क्रांति के मुख्य कारण क्या थे ?
रूस में हुई 1917 की क्रांति को बोल्शेविक क्रांति कहा जाता है। बोल्शेविक नामक एक राजनीतिक समूह ने इस क्रांति की दशा एवं दिशा को निर्धारित किया और इस क्रांति में अपनी महत्वपूर्ण तकनीकी विश्लेषण के उत्तर भूमिका निभाई थी। बोल्शेविक की क्रांति विश्व की महत्वपूर्ण क्रांतियों में से एक थी जिसने न केवल निकोलस के तानाशाही, एकतंत्री और स्वेच्छाचारी शासन का अंत किया बल्कि पूंजीपतियों और सामंतों का भी अंत किया गया। बोल्शेविक क्रांति ने किसानों, मजदूरों एवं निचले वर्ग के लोगों की सत्ता स्थापित करते हुए इनको समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कराया।
बोल्शेविक राजनीतिक समूह रुसी सामाजिक डेमोक्रेटिक मजदूर पार्टी का ही एक टूटा हुआ हिस्सा था। बोल्शेविक रुसी भाषा का एक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ बहुसंख्यक या बहुमत है। इस प्रकार बोल्शेविक राजनीतिक समूह बहुसंख्यकों का एक समूह था। बोल्शेविक क्रांति दो भागों में हुई थी जिसमें पहली क्रांति मार्च वर्ष 1917 में और दूसरी क्रांति अक्टूबर वर्ष 1917 में हुई थी। अक्टूबर की बोल्शेविक क्रांति लेनिन के नेतृत्व तकनीकी विश्लेषण के उत्तर में हुई जिसमें इस क्रांति की विजय हुई थी।
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1917 की बोल्शेविक क्रांति के मुख्य कारण ( The main causes of the Bolshevik Revolution of 1917 in hindi )-
निरंकुश निकोलस का शासन
बोल्शेविक क्रांति का कारण निकोलस के निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासन है। निकोलस के शासन के समय उसकी जनता को किसी भी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे क्योंकि निकोलस नहीं चाहता था कि उसकी जनता को किसी प्रकार के अधिकार मिले। निकोलस अपनी जनता पर अधिकार करके उन पर अत्याचार करता था। यही वजह थी कि रूस में बोल्शेविक क्रांति का उदय हुआ।
सामाजिक और आर्थिक स्थिति खराब होना
बोल्शेविक क्रांति का एक कारण रूस की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का खराब होना था, रूस में उच्च वर्ग के लोगों को सारे अधिकार प्राप्त थे और निम्न वर्ग के लोगों को किसी भी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थी। निम्न वर्ग के लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी और इनकी इस स्थिति ने ही बोल्शेविक क्रांति को जन्म दिया।
प्रथम विश्व युद्ध
बोल्शेविक क्रांति का कारण प्रथम विश्व युद्ध भी था, रूस की साम्राज्यवादी नीति के दौरान क्रांतिकारी प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। प्रथम विश्व युद्ध होने के बाद लोगों में क्रांति की तेज लहर दौड़ गयी जो अंततः बोल्शेविक क्रांति का कारण बना। इसके अलावा प्रथम विश्व युद्ध के बाद बहुत बड़ी संख्या में रूस के सैनिकों को वेतन नहीं दिया गया जिससे सैनिक भड़क उठे और उन्होंने एक बड़ी बोल्शेविक क्रांति का रूप ले तकनीकी विश्लेषण के उत्तर लिया।
रूस और जापान के बीच युद्ध
बोल्शेविक क्रांति का एक प्रमुख कारण वर्ष 1905 में रूस और तकनीकी विश्लेषण के उत्तर जापान के बीच हुआ युद्ध भी था। रूस और जापान के बीच इस युद्ध में रूस हार गया था और जापान की विजय हुई थी। इस युद्ध के बाद जापान ने रूस के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार प्राप्त कर लिया था जिससे रूस के लोगों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और यह बोल्शेविक क्रांति का कारण बना।
समाजवादी विचारधारा का उदय
बोल्शेविक क्रांति का एक कारण रूस में समाजवादी विचारधारा का उदय होना था। रूस के लोगों की स्थिति बहुत खराब हो गयी थी जिसको देख वहां के कुछ लोगों के बीच समाजवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार होने लगा। अतः रूस के लोगों के बीच समाजवादी की लहर उठ गई जो बोल्शेविक क्रांति का एक प्रमुख कारण बन गया।
UP Board Exam 2023: यूपी बोर्ड के लाखों स्टूडेंट्स को मिलेगा लाभ, जानिये कैसे
UP Board Exam 2023: उत्तर प्रदेश में इस साल लगभग 58.78 लाख छात्र यूपी बोर्ड की कक्षा 10 और कक्षा 12 की परीक्षाओं में शामिल होंगे। पढ़िये स्टूडेंट्स को कैसे मिलेगा लाभ.
UP Board Exam 2023: यूपी बोर्ड परीक्षा 2023 से पहले उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UPMSP) अपने छात्रों के लाभ के लिए तकनीकी शब्दावली और कठिन शब्दों का एक डिक्शनरी (dictionary) लाने वाला है। डिक्शनरी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में शब्दों और शब्दावली की व्याख्या करेगा। इससे 28,000 से अधिक स्कूलों के लाखों छात्रों को लाभ होने तकनीकी विश्लेषण के उत्तर की उम्मीद है।
आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया कि डिक्शनरी के लिए गणित (Mathematics), भौतिकी (Physics) और रसायन (Chemistry) विज्ञान जैसे विषयों के तकनीकी शब्दों को विस्तृत करने का काम लगभग पूरा हो चुका है। शब्दकोश हिंदी, उर्दू और संस्कृत जैसे गैर-एसटीईएम विषयों के कठिन शब्दों की भी व्याख्या करेगा।
बोर्ड के सचिव दिव्यकांत शुक्ला ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले शैक्षणिक सत्र 2023-24 तक बच्चों और शिक्षकों के लिए शब्दकोश उपलब्ध हो जाएगा। इससे राज्य भर में पढ़ने वाले कक्षा 9 से 12 तक के लगभग एक करोड़ छात्रों को लाभ होगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, राज्य बोर्ड के छात्रों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे एनसीईआरटी (NCERT) और गैर-एनसीईआरटी (non-NCERT) किताबों तकनीकी विश्लेषण के उत्तर में इस्तेमाल होने वाले कठिन और तकनीकी शब्दों के शब्दकोश को डिजाइन करने और तैयार करने के लिए राज्य सरकार से मंजूरी मिलने के बाद यह कदम उठाया जा रहा है। 2018 में, बोर्ड ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) पाठ्यक्रम को लागू किया था। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में NCERT की 67 किताबें पढ़ाई जा रही हैं। शब्दकोश तैयार करने के लिए बोर्ड मुख्यालय में विषय विशेषज्ञों के साथ विशेष वर्कशॉप कार्यशालाएं आयोजित की गईं हैं।
उत्तराखंड में मतांतरण के खिलाफ सख्त कानून की जरूरत क्यों ? जानें सबकुछ
लव जिहाद के साथ-साथ राज्य में बिछा ईसाई मिशनरियों का जाल
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की सरकार कन्वर्जन को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने जा रही है। कानून के मसौदे को धामी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है और अब इसे विधानसभा पटल पर रखा जाएगा। जहां तकनीकी विश्लेषण के उत्तर से पारित होने के बाद राज्यपाल फिर राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सवाल ये है कि आखिरकार इस कन्वर्जन कानून की राज्य को क्यों जरूरत पड़ रही है? जबकि तकनीकी विश्लेषण के उत्तर इस उत्तराखंड को देवभूमि यानी हिंदू देवी-देवताओं का प्रवास वाला राज्य माना जाता है।
उत्तराखंड सरकार ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में 2018 में कैबिनेट में मतांतरण विधेयक को प्रस्तुत करने के बाद विधानसभा में पारित किया था। सूत्र बताते हैं कि ये विधेयक कुछ तकनीकी खामियों की वजह से राष्ट्रपति तक नहीं जा सका। अब धामी सरकार ने इस मतांतरण विधेयक में विधि विशेषज्ञों की राय लेने के बाद, इसका ड्राफ्ट फिर से तैयार करवा कर कैबिनेट में पास किया है और अब इसे विधानसभा के अगले सत्र में लाया जाएगा।
इस विधेयक में मतांतरण तकनीकी विश्लेषण के उत्तर की सजा दस साल करने का प्रावधान किया गया है। खास बात ये है कि यूपी तकनीकी विश्लेषण के उत्तर में मतांतरण करने की सजा पांच साल है, जबकि यहां दस वर्ष करके ये संदेश दिया गया है कि उत्तराखंड का विधेयक ज्यादा कठोर होगा। विधेयक में मतांतरण करने वाला व्यक्ति अल्पसंख्यक बन जाता है तो उसे जनजाति श्रेणी की समस्त सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाएगा। मतांतरण में जुर्माने की राशि 50 हजार किए जाने का प्रावधान किया गया है। जानकारी के मुताबिक यदि कोई संस्था सामूहिक रूप से मतांतरण करवाती है तो पहले इसमें दो से सात तकनीकी विश्लेषण के उत्तर साल की सजा रखी गई थी। नए बिल में इसे भी बढ़ा कर तीन से दस साल कर दिया गया है। पूर्व में आरोपियों को तत्काल जमानत का प्रावधान दिया गया था, परंतु अब इसे गैर जमानत की श्रेणी में रखा गया है।
सरकार ने मतांतरण करवाने वाले और करने वाले दोनों को इस कानून के शिकंजे में ले लिया है। यानी यदि इस कानून को राष्ट्रपति द्वारा मंजूर कर लिया जाता है तो ये हिंदू धर्म के संरक्षण और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा और देश के किसी भी राज्य में ऐसा सख्त कानून नहीं होगा। उत्तराखंड में ईसाई मिशनरियों ने सबसे ज्यादा मतांतरण का अभियान पिछले कई दशकों से चलाया हुआ है। इनके निशाने में जनजाति समुदाय और वंचित समुदाय ही रहता है।
राज्य के उधमसिंह नगर जिले में रहने वाली थारू बुक्सा जनजाति जिसे आज भी महाराणा प्रताप या तकनीकी विश्लेषण के उत्तर राजपूत वंशज माना जाता है, उनकी 35 फीसदी आबादी ईसाई बन चुकी है। पहाड़ों में वंचित, अंबेडकर, वाल्मीकि समाज में भी ईसाई मिशनरियों ने अपना जाल फैलाया हुआ है और उन्हें ईसाई बनाया जा रहा है। ईसाई मिशनरियां बेहद चालाकी से वंचित हिंदू समुदाय को अपने साहित्य और संबोधनों के जरिए प्रभावित कर रही हैं। अब पादरी सफेद कपड़ों में नहीं आते, बल्कि यहीं के स्थानीय लोगों के बीच से निकले हुए मसीह पादरी होते हैं। चर्चो में अब सेंट की जगह संत लिखा हुआ मिलता है, साहित्य में भगवान कृष्ण को ईसा मसीह बता कर बरगला दिया जाता है।
टिहरी, नैनीताल, हरिद्वार, पिथोरागढ़, देहरादून, बागेश्वर जिले में ईसाई मिशनरियों द्वारा बेधड़क होकर मतांतरण किया है। सिखो में राय सिख समुदाय में भी मिशनरियों की सक्रियता बढ़ी है और बड़ी संख्या में सिखो ने गुरुद्वारे छोड़ कर चर्च की प्रार्थना सभाओं का रुख कर लिया है। हाल ही में जसपुर, भोगपुर, काशीपुर क्षेत्र में बौद्ध पंथ अपनाने के लिए बाकायदा बड़े- बड़े जलसे किए गए।
ईसाई मिशनरियों की हरकतों के अलावा उत्तराखंड में तेजी से लव जिहाद की घटनाएं फैली हैं। पहले मैदानी जिलों में ही हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़कों द्वारा नाम बदल कर प्रेम जाल में फंसाने और उनका मतांतरण कराने की घटनाएं सामने आती थीं, अब पहाड़ी क्षेत्रों में पौड़ी, टिहरी, चमोली, चंपावत, बागेश्वर, नैनीताल जिले में ऐसे मामले दर्ज हुए हैं। जानकारी के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास उत्तराखंड में मतांतरण की खबरें आईबी के जरिए पहुंची हैं जिसके बाद से उत्तराखंड सरकार जागी और कैबिनेट में मतांतरण विधेयक लाए जाने को मंजूरी दी गई है।
विश्व हिंदू परिषद से जुड़े अधिवक्ता वैभव कांडपाल कहते हैं कि मतांतरण कानून की राज्य को जरूरत है सरकार का फैसला स्वागत योग्य है। देहरादून के एडवोकेट राजीव शर्मा कहते हैं कि मतांतरण कानून के साथ-साथ सशक्त भू कानून की भी जरूरत है।