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संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है

संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है
15 नवंबर, 2021 को प्रगति मैदान, नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में अफगान व्यापारी मोहम्मद रफी अनवारी (बाएं) और उनके भाई एहसान अनवारी (दाएं) | फोटो: पिया कृष्णनकुट्टी | दिप्रिंट

प्रज्ञा, कूटनीति से भू-राजनीतिक तनाव कम हुए: सुल्तान अल जाबेर

अबू धाबी, 11 जनवरी 2020 (डब्ल्यूएएम) -- राज्य मंत्री और एडीएनओसी समूह के सीईओ डॉ. सुल्तान बिन अहमद सुल्तान अल जाबेर ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में भू-राजनीतिक तनाव कम हो गए हैं। उन्होंने इसके लिए प्रज्ञा व कूटनीति को जिम्मेदार ठहराया। अल जाबेर का यह बयान देश की राजधानी अबू धाबी में अबू धाबी सस्टेनेबिलिटी वीक (एडीएसडब्ल्यू) के रूप में होने वाली अटलांटिक काउंसिल ग्लोबल एनर्जी फोरम के उद्घाटन के दौरान आया। ऊर्जा लीडर्स और नीति निर्माताओं को संबोधित करते हुए डॉ. अल जाबेर ने कहा कि जब तक भू-राजनीतिक अनिश्चितता बनी हुई है, 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति में दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि व्यापार तनाव कम करने, नए सिरे से विकास के संकेत और वैश्विक उपभोक्ता खर्च को मजबूत करने वाले विनिर्माण से हम सतर्क आशावाद के साथ आगे बढ़ सकते हैं। डॉ. अल जाबेर ने ऊर्जा मांग पर इन वैश्विक आर्थिक रुझानों के प्रभाव पर प्रकाश डाला और तेजी से विकसित हो रहे ऊर्जा परिदृश्य के लिए यूएई और एडीएनओसी की प्रतिक्रिया को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "इस आर्थिक दृष्टिकोण का मतलब है कि ऊर्जा की छोटी और लंबी अवधि की मांग दोनों मजबूत बनी हुई है। अगले दो दशकों में हम ऊर्जा की मांग में कम से कम 25 फीसदी की वृद्धि देखेंगे। उन्होंने कहा, "यहां यूएई में हम इस चुनौती को एक अवसर के रूप में देखते हैं। पिछले 10 वर्षों में हमने अपनी सौर क्षमता में 400 फीसदी वृद्धि की है और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया है, जो यूएई में 12 गीगावाट और दुनिया भर के 25 देशों में पहुंच रहे हैं। डॉ. अल जाबेर ने कहा, "हम अपने घरेलू पोर्टफोलियो में स्वच्छ परमाणु ऊर्जा भी जोड़ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ मिलकर काम करते हुए इस वर्ष यूएई एक सुरक्षित वाणिज्यिक, शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा स्टेशन संचालित करने वाला क्षेत्र का पहला देश होगा।"

डॉ. अल जाबेर ने जोर दिया कि यूएई ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों को संचालित करता है, इसलिए यह वैश्विक बाजारों में ऊर्जा के विश्वसनीय प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए अपने हाइड्रोकार्बन संसाधनों को जिम्मेदारी से बढ़ा रहा है। डॉ. अल जाबेर ने कहा, "एडीएनओसी में हम इस साल के अंत तक कच्चे तेल की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 4 मिलियन बैरल प्रति दिन करने के लिए ट्रैक पर हैं। वास्तव में हम गैस आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और अंततः एक शुद्ध निर्यातक बनने के मार्ग पर हैं।"संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है

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विशालकाय टनल, 35 सैनिकों को ले जा सकने वाली नाव. लद्दाख में चीन को टक्कर देने को तैयार भारतीय सेना

लद्दाख में भारतीय सेना चीन को टक्कर देने की पूरी तैयारी में जुटी है. वहां विशालकाय टनल का निर्माण चल रहा है. इसके अलावा पैंगोंग झील में नए लैंडिंग क्राफ्ट तैनात हुए हैं. ये लैंडिंग क्राफ्ट एकसाथ 35 सैनिकों को ले जाने में सक्षम हैं.

निर्माणाधीन सेला टनल की तस्वीर

मंजीत नेगी

  • नई दिल्ली,
  • 15 नवंबर 2022,
  • (अपडेटेड 15 नवंबर 2022, 11:34 PM IST)

लद्दाख में गतिरोध फिलहाल भले शांत हो लेकिन चीन ने वहां निर्माण कार्य रोका नहीं है. इसकी काट निकालने के लिए भारतीय सेना ने भी पूरी कमर कसी हुई है. भारतीय सेना लद्दाख में नई सड़कों, टनल को बनाने की तैयारी में जुटी है. इसके साथ-साथ कई निर्माण कार्य पूरे भी हो चुके हैं. रक्षा सूत्रों ने बताया है कि भारतीय सेना ने ईस्टर्न सेक्टर में ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है, जिसमें 450 टैंक और 22 हजार सैनिकों को ठहराया जा सकता है.

इसी के साथ पैंगोंग झील, जिसका हिस्सा भारत और चीन दोनों में है. उसमें पेट्रोलिंग को और मजबूत भी बनाया गया है. इसके लिए भारतीय सेना की इंजीनियरिंग टीम ने नए लैंडिंग क्राफ्ट बनाए हैं. इसने पेट्रोलिंग क्षमता को काफी बेहतर किया है. ये लैंडिंग क्राफ्ट एकसाथ 35 सैनिकों को ले जाने में सक्षम हैं.

स्थाई इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है पर जोर

रक्षा सूत्रों ने बताया है कि पिछले दो सालों में आवास और तकनीकी भंडारण की स्थिति को और बेहतर किया गया है. ऐसी सुविधाएं विकसित की गई हैं जिनमें 22 हजार के करीब सैनिकों और 450 के करीब वाहनों को रखा जा सके. अब सेना के लिए स्थाई इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण पर जोर है.

तालिबान के काबिज होने से देश पर आए संकट के बीच इस बार कम अफगान विक्रेता ट्रेड फेयर पहुंचे

इस साल ‘हुनर हाट’ में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 550 से अधिक कारीगर और शिल्पकार हिस्सा ले रहे हैं.

15 नवंबर, 2021 को प्रगति मैदान, नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में अफगान व्यापारी मोहम्मद रफी अनवारी (बाएं) और उनके भाई एहसान अनवारी (दाएं) | फोटो: पिया कृष्णनकुट्टी | दिप्रिंट

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में हमेशा से पसंदीदा रहा भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) कोविड के कारण एक साल के अंतराल के बाद फिर से अपने चरम पर है.

मेले में हमेशा की ही तरह कई देशों के कारोबारी हिस्सा ले रहे हैं. इनमें नेपाल, बांग्लादेश, बहरीन, ईरान, श्रीलंका, ट्यूनीशिया, तुर्की, किर्गिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात के अलावा अफगानिस्तान भी शामिल है, जो देश पर तालिबान के कब्जे संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है के बाद से संकटों का सामना कर रहा है.

हालांकि, आईआईटीएफ में पिछले सालों की तुलना में इस बार कम अफगान कारोबारी दिखाई दे रहे हैं.

देश संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है के कारोबारियों ने दिप्रिंट से बात के दौरान बताया कि दिल्ली-काबुल के बीच सीधी उड़ानों की कमी के कारण उन्हें किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही उन्होंने अपने यहां सुरक्षा स्थिति को लेकर अपनी चिंताओं पर भी चर्चा की.

पिछले तीन सालों से दिल्ली के द्वारका में ड्राई-फ्रूट की दुकान चला रहे हारून मुजाद्दीदी ने कहा, ‘2019 में, 40-50 अफगान व्यापारी मेले में शामिल हुए थे लेकिन इस साल करीब 12 ही आए हैं क्योंकि भारत और अफगानिस्तान के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं है.’

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हारून इस बात से आहत हैं कि उनके देश में सुरक्षा की स्थिति ने भारत में उनके कारोबार पर प्रतिकूल असर डाला है. उन्होंने कहा, ‘चूंकि दिल्ली-काबुल के बीच सीधी उड़ानें नहीं हैं, हमें वाघा बॉर्डर से सड़क के जरिए सूखे मेवे और बादाम आदि आयात करने पड़ रहे हैं. इसमें 20 से 25 दिन तक लग जाते हैं. पहले हम हवाई जहाज से आयात करते थे और उत्पाद सिर्फ दो दिनों में आ जाते थे. मेरा कारोबार पहले से ही महामारी के कारण प्रभावित हो रहा था लेकिन अब स्थिति और बदतर हो गई है.’

काबुल और नई दिल्ली के बीच सीधी उड़ानें जल्द फिर शुरू होने की संभावना नहीं है क्योंकि अगस्त में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय बनी हुई है.

मेले में हिस्सा ले रहे ज्यादातर अफगान व्यापारी वे हैं जो सालों पहले भारत आकर बस चुके हैं. 39 वर्षीय मोहम्मद रफी अनवरी और 32 वर्षीय एहसान अनवरी—जो 2007 से दिल्ली स्थित लाजपत नगर और अमर कॉलोनी में ड्राई फ्रूट्स की दुकानें चला रहे हैं—यहां आए ऐसे ही दो भाई हैं.

मोहम्मद रफी अनवरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं यहां सुरक्षित हूं और मेरा परिवार मेरे साथ है. हम भाग्यशाली हैं. मैं नहीं चाहता कि इस पर कुछ सोचूं कि अफगानिस्तान में क्या हो रहा है. यह बहुत पीड़ादायक है.’

नेपाली मस्युरा, तुर्की लैंप, बांग्लादेशी हस्तशिल्प

आईआईटीएफ यानी व्यापार मेले का उद्घाटन रविवार को हुआ और यह 27 नवंबर तक चलेगा. इसका आयोजन वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक निकाय भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) की तरफ से किया जाता है.

मेले का उद्घाटन करते हुए वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘आईआईटीएफ यह दिखा देगा कि भारत में कामकाज पटरी पर आ गया है.’

प्रदर्शनी में हिस्सा लेने वाले भारत और विदेशों के लगभग प्रतिनिधियों के साथ आईआईटीएफ 2021 का आयोजन कुल 70,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में किया जा रहा है जो पिछली बार 2019 में लगे मेले की तुलना में तीन गुना बड़ा है.

हालांकि, विदेशी व्यापारियों का कहना है कि पिछले वर्षों की तुलना में इस बार कम लोग पहुंच रहे हैं.

इस्तांबुल स्थित टिलो हेडियालिक संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है के मालिक और आईआईटीएफ में अपने भाइयों के साथ सजावटी लैंप, चीनी मिट्टी की चीजें और क्रॉकरी बेचने के लिए आए तुर्की के व्यापारी हेरुल्लाह कारपुज का कहना है, ‘यह 22वीं बार है जब हम भारत के व्यापार मेले में आए हैं. पहले तो ऐसी भीड़ होती थी कि हम और आप पांच मिनट भी बात नहीं कर पाते लेकिन अब चारों ओर देखिए बहुत कम लोग नजर आ रहे हैं.’ साथ ही जोड़ा, ‘उम्मीद है कि समय बीतने के साथ लोगों की संख्या बढ़ेगी.’

उन्होंने बताया कि इस्तांबुल में पारिवारिक व्यवसाय के लिए लगभग 150 महिलाएं काम करती हैं जो खासतौर पर हाथ से बनने वाले लैंप और लालटेन तैयार करती हैं.

विदेशी व्यापारियों द्वारा बेची जाने वाली अन्य वस्तुओं में नेपाली भोजन, ईरान के जेवर, ट्यूनीशिया की पारंपरिक क्रॉकरी जैसे सजावटी सामान और बांग्लादेश से लकड़ी को तराश कर तैयार किए गए हस्तशिल्प शामिल हैं.

उदाहरण के तौर पर नेपाली व्यापारी सोमप्रसाद मुदबारी मसाला मस्युरा बेच रहे हैं, जो काले चने, कोलोकेशिया और विभिन्न मसाले को मिलाकर बना एक अत्यधिक पौष्टिक नेपाली भोज्य पदार्थ है.

मस्युरा धूप में सुखाया जाता है और यह अधिकांश नेपाली घरों की रसोई में मिलता है.

मुदबारी के मुताबिक, ‘नेपाली सूप में इस मस्युरा का इस्तेमाल किया जाता है और यह विटामिन और मिनरल से भरपूर होता है. हम इसे सर्दियों के लिए स्टोर करते हैं और इससे करी या सूप बनाते हैं.’

पूर्व में चीन और उज्बेकिस्तान जैसे देशों के उत्सवों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके 34 वर्षीय बांग्लादेशी शिल्पकार रफीकुल इस्लाम ने कहा, ‘मेरे दादा और मेरे पिता लकड़ियों को तराशते थे. मुझे किसी ने नहीं सिखाया, मैंने बस उन्हें देखकर सीखा. अब, मैं पिछले नौ सालों से पारिवारिक व्यवसाय को चला रहा हूं. मुझे अपना हुनर दिखाने के लिए भारत आने पर गर्व है.’

इस्लाम की बांग्लादेश की राजधानी ढाका संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है से लगभग 15 किमी दूर नारायणगंज में हस्तशिल्प की एक छोटी सी दुकान है.

‘हुनर हाट’ का शुभारंभ

मेले में हिस्सा लेने वाले भारतीय व्यापारी राजस्थान से तामचीनी कुंदन संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है आभूषण, गुजरात से हैंड-ब्लॉक प्रिंटेड कपड़े और जम्मू और कश्मीर से किश्तवाड़ कंबल और शॉल जैसे आइटम लाए हैं.

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने सोमवार को मेले में ‘हुनर हाट’ के 33वें संस्करण का उद्घाटन किया जो पारंपरिक उत्पादों और हस्तशिल्प की एक विशेष प्रदर्शनी है.

नकवी ने कहा, महामारी के दौरान वैश्विक मंदी के बीच स्वदेशी उत्पादन क्षमता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ‘सुरक्षा कवच’ बन गई है.

इस साल ‘हुनर हाट’ में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 550 से अधिक कारीगर और शिल्पकार हिस्सा ले रहे हैं.

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महाधिवेशन से आगे

महाधिवेशन से आगे

दे श की सबसे पुरानी और बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का 83वां महाधिवेशन देश की राजधानी में संपन्न हो गया। इस तरह के आयोजनों में किसी भी राजनीतिक दल से दशा और दिशा पर चिंतन की अपेक्षा की जाती है, पर इस दो दिवसीय आयोजन में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया। केंद्र में गठबंधन सरकार का नेतृत्व संकेत एक छोटी स्थिति के उद्घाटन का संकेत है कर रही कांग्रेस का यह महाधिवेशन जिस राजनीतिक परिदृश्य और माहौल में हुआ, उसमें यह तो अपेक्षित ही था कि घोटालों का शोर हावी रहे, पर यह आयोजन पूरी तरह विपक्षी दलों पर हमले को ही समर्पित हो जायेगा—इसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की होगी। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने अपने उद्घाटन भाषण में आतंकवाद के साथ-साथ भ्रष्टाचार और इससे निपटने के पार्टी के संकल्प पर जोर दिया था। समापन भाषण में भी वह इस दावे के साथ हावी नजर आया कि भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस का दामन भाजपा के मुकाबले साफ है, मगर बेदाग तो हरगिज नहीं है। यह बेदाग कैसे हो सकता है, यह अवश्य कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने उद्घाटन भाषण में बताया, उस कार्ययोजना पर अमल के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इरादे के अलावा किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री-मंत्री ने मंच से यह ऐलान नहीं किया कि भ्रष्टाचार का स्रोत बन गये विशेषाधिकार को छोडऩे का साहस वह दिखायेंगे। महत्वपूर्ण तो यह भी है कि हर छोटी-मोटी बात पर तालियां बजाने वाले कांग्रेसियों ने अपनी अध्यक्ष की भ्रष्टाचार विरोधी कार्ययोजना पर ताली भी नहीं बजायी। इसका संकेत तो यही है कि उपदेश तो अच्छा है, पर उस पर अमल की अपेक्षा न की जाये? महाधिवेशन के दूसरे दिन प्रधानमंत्री ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जेपीसी जांच की विपक्षी मांग को एक बार फिर बिना कारण बताये खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री ने जिस तरह इस मामले में पीएसी के सामने पेश होने की पेशकश की, उससे वह अपनी छवि निखरने की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन यह सवाल फिर भी अनुत्तरित ही रह जाता है कि आखिर जेपीसी से सरकार क्यों भाग रही है? प्रधानमंत्री को शक से परे होना चाहिए, सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, दोषियों को दंडित भी किया जायेगा, पर जेपीसी जांच मंजूर नहीं है। यह अजीब-सी स्थिति है और जाहिर है कि स्थिति साफ करने की जिम्मेदारी सरकार की ही बनती है। हां, एक बात अवश्य कही जा सकती है कि जेपीसी जांच से अपना भय भले ही दूर न कर पायी हो, पर कांग्रेस ने विपक्ष खासकर भाजपा पर पलटवार का साहस जरूर दिखाया है। राजनीति में यह भी जरूरी होता है। राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी और 2जी स्पेक्ट्रम घोटालों ने कांग्रेस को जिस रक्षात्मक खोल में धकेल दिया था, उससे वह बाहर निकलती दिख रही है। अगर वह यह काम सिर्फ शब्दों के वजाय कार्रवाई से करे तो विश्वसनीयता अधिक होगी। प्रधानमंत्री ईमानदार बने रहें और देश में भ्रष्टाचार का खुला खेल चलता रहे तो उसका क्या अर्थ रह जाता है? हिंदू कट्टरपंथियों की बाबत अपनी विवादास्पद टिप्पणी से मुंह चुरा कर राहुल गांधी ने भ्रष्टाचार के आम आदमी से विकास के अवसर छीनने के बारे में जो कुछ कहा है, वह वास्तव में सही है। इसलिए विपक्षी दलों से वाक्युद्ध के अलावा भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कुछ ठोस कदम उठाये जाने की भी जरूरत है। यह महाधिवेशन सरकार का नहीं, कांग्रेस संगठन का था। इसलिए स्वाभाविक ही वह एजेंडा पर सर्वोपरि होना चाहिए था, पर दुर्भाग्य से ऐसा दिखा नहीं। राहुल गांधी ने मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को कार्यकर्ताओं को महत्व देने की नसीहत दी तो सोनिया ने कार्यकर्ताओं से सरकार की उपलब्धियां बताने के लिए देश भर में जन-जागरण अभियान चलाने का आह्वïान किया, पर सिर्फ नसीहतों और आह्वïानों के बल पर कोई राजनीतिक दल मजबूत हो सकता होता तो शायद आज कांग्रेस की देश के दो सबसे बड़े राज्यों में ऐसी दुर्दशा नहीं हो रही होती। बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस टिकट बेचे जाने के आरोप पहले भी लगे थे। फिर पार्टी की शर्मनाक हार भी हो गयी, लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं की गयी। नतीजतन बिहार के कांग्रेस प्रतिनिधियों का गुस्सा महाधिवेशन में मुखर हुआ। उसे भी सेवादल कार्यकर्ताओं ने दबा दिया, पर इससे क्या होगा? छिपाने से तो बीमारी ठीक नहीं हो जायेगी? फिर कांग्रेस में तो यह नासूर बन चुकी है। अगर आलाकमान को अब भी लगता है कि कांग्रेस में टिकट बिना मोटी रकम, बड़ी पहुंच या परिवारवाद की पृष्ठभूमि के मिलते हैं तब फिर उसे अपने सूचना तंत्र को ही सबसे पहले दुरुस्त करना चाहिए। राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस में मनोनयन संस्कृति खत्म कर चुनाव की स्वागतयोग्य शुरुआत की है, पर उसके बावजूद वंश-बेल का ही आगे बढऩा क्या इसकी विश्वसनीयता पर ही सवालिया निशान नहीं लगा देता है? दरअसल, जब तक नेता परिवारवाद की गोद और दरबारियों की जेब से निकलते रहेंगे, तब तक कांग्रेस जनता और जमीन से नहीं जुड़ पायेगी। इसके लिए महंगाई सरीखे जनता से जुड़े मुद्दों पर भी उसे शाब्दिक लफ्फाजी से आगे बढ़कर कुछ करना होगा।

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