हर क्रिप्टो एक अलग एसेट

क्रिप्टो करेंसी Goods है या Services, इस सवाल ने टैक्स अधिकारियों के पसीने क्यों छुड़ा रखे हैं?
अगर आप इस सरकारी बहस से ऊब गए हों कि क्रिप्टो करेंसी एसेट है या करेंसी, तो अब एक नई बहस आपका इंतजार कर रही है. हाल ही में बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राओं का व्यापार कराने वाले क्रिप्टो एक्सचेंजों पर पड़ी जीएसटी रेड के बाद टैक्स विभाग और क्रिप्टो इंडस्ट्री में रस्साकशी शुरू हो गई है कि क्रिप्टो करेंसी 'गुड्स' (Goods) है या 'सर्विसेज' (Services). एक ऐसी आभासी मुद्रा जिसे न कोई देख सकता है, न छू सकता है और न ही जब्त कर सकता है. न इसके मालिक का पता होता है और न ही इसकी खरीद-बिक्री यानी सप्लाई चेन ट्रेस हो सकती है. ऐसे में जब तक क्रिप्टो करेंसी पर बैन या रेग्युलेशन नहीं आ जाता, विभागों के लिए एक बड़ी चुनौती इससे टैक्स वसूलने की भी है.
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) ने हाल ही में देश के कई क्रिप्टो एक्सचेंजों पर छापा मारा था. फिलहाल इनकी फीस और मार्जिन को कमाई का आधार बनाकर लाइबिलिटी तय की गई है और टैक्स जमा कराने को कहा गया है. जानकारों की मानें तो आम कमोडिटी एक्सचेंजों की तर्ज पर फीस और मार्जिन से टैक्स वसूलने का मतलब है कि सरकार क्रिप्टो एजेंसियों के काम को 'सर्विसेज' मानकर चल रही है, जिस पर 18 पर्सेंट जीएसटी लगता है. लेकिन कुछ क्रिप्टो एजेंसियां इस पर कानूनी सफाई मांग रही हैं. चूंकि किसी भी कानून में क्रिप्टो करेंसी का कहीं जिक्र नहीं है और न ही इसका व्यापार किसी तरह के मौजूदा ट्रेड से मेल खाता है, ऐसे में अब यह मसला जीएसटी काउंसिल या सरकार के शीर्ष स्तरों तक जाता दिख रहा है.
क्रिप्टो पर टैक्स का पेच?
क्रिप्टो करेंसी की खूबी इसका प्राइवेट वेल्थ होना है. इसे कोई दूसरा न देख सकता और न जब्त कर सकता है. फिलहाल सरकार के लिए यह पता करना भी मुश्किल है कि यह किन-किन हाथों से गुजरी है. इनकम टैक्स कानून के तहत असेसमेंट, जब्ती या रिकवरी तब तक संभव नहीं, जब तक करेंसी मालिक खुद डिक्लेयर न करे कि उसने कितना इनवेस्ट किया है या विभाग उपलब्ध साक्ष्यों से यह साबित न कर दे. ऐसे में शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन भी तय नहीं हो सकता.
जहां तक जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों की बात है, अगर क्रिप्टो करेंसी को गुड्स मानकर चलें तो इसका वैल्युएशन संभव नहीं है. अभी ज्यादा से ज्यादा सिर्फ ऑपरेटर्स यानी एक्सचेंजों तक ही पहुंचा जा सकता है. उनकी फीस और मार्जिन को सर्विसेज बताकर 18 पर्सेंट जीएसटी तो लगा दिया गया है, लेकिन यहां भी कई पेच हैं. ट्रांजैक्शन फीस सेंडर्स यानी किसी को करेंसी बेचने वाले की तरफ से चुकाई जाती है. लेकिन रेसिपिएंट का पता नहीं चलने से सप्लाई ऑफ सर्विसेज का निर्धारण सही नहीं हो सकता. सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर कोई रेसिपिएंट या कोई क्रिप्टो एक्सचेंज देश के बाहर है, तो मौजूदा कानूनों के तहत यहां टैक्सेशन और भी मुश्किल हो जाएगा.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
जाने-माने जीएसटी कंसल्टेंट और पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (PHDCCI) की इनडायरेक्ट टैक्स कमिटी के चेयरमैन बिमल जैन ने 'दी लल्लनटॉप' को बताया-
"एक डिजिटल करेंसी, जो ब्लॉकचेन इनक्रिप्शन यानी कोडेड तकनीक से संचालित होती है. जहां यही तय नहीं है कि इसे गुड्स मानें या सर्विसेज. ट्रेड वैल्यू और प्लेस ऑफ सप्लाई जैसी मूलभूत सूचनाएं नदारद हैं. यानी कौन, कितना, किससे खरीद रहा है और किसको, कहां बेच रहा है, कुछ भी पता नहीं. ऐसे में टैक्सेबिलिटी अंधेरे में तीर मारना जैसा ही है. आप शेयर ट्रेडिंग करते हैं. सिक्योरिटीज टैक्सेबल भले न हों, लेकिन एक्सचेंज और ब्रोकरेज हाउस के डेटा के जरिए प्रोसेसिंग या ट्रांजैक्शन फीस और टैक्स तो लगता ही है. यह सब होता है, क्योंकि शेयर मार्केट रेग्युलेटेड है. जब तक क्रिप्टो करेंसी का रेग्युलेशन नहीं होगा. उससे वाजिब टैक्स वसूली संभव नहीं है."
बिमल जैन ने क्रिप्टो करेंसी के व्यापार की तुलना फर्जी चिटफंड और पिरामिड स्कीमों से की. जहां एक आदमी दूसरे से और दूसरा तीसरे से पैसा वसूलता रहता है, इस भरोसे के साथ कि आगे बहुत रिटर्न मिलेगा. लेकिन एक दिन उसका मुखिया या कंपनी ही भाग जाती है. उन्होंने बताया कि अगर सरकार ने इसे बैन या रेग्युलेट नहीं किया तो सबसे बड़ा खतरा युवा पीढ़ी के फंसने का है. नई जेनरेशन रातोंरात रिटर्न कमाने के चक्कर में क्रिप्टो में निवेश कर रही है. इसकी कोई गारंटी नहीं कि आगे वाला अपनी वित्तीय लाइबिलिटी पूरी करता रहेगा.
जीएसटी की सांकेतिक तस्वीर
बिजनेस मॉडल पर सवाल
क्रिप्टो करेंसी का व्यापार एक ऐसे कंप्यूटर नेटवर्क पर आधारित है, जहां हर टर्मिनल अपने आप में सर्वर का काम करता है. इसे पीयर टु पीयर (Peer to peer) प्लैटफॉर्म भी कहते हैं. DGGI ने क्रिप्टो एक्सचेंज WazirX से टैक्स और पेनल्टी के तौर पर 50 करोड़ की वसूली की है. लेकिन जांच के दायरे में आए Unocoin जैसे एक्सचेंजों को अभी टैक्स और पेनल्टी का फाइनल नोटिस नहीं दिया जा सका है.
इन एक्सचेंजों की शिकायत है कि सरकार यह तय नहीं कर पाई है कि उन्हें किस बिजनेस मॉडल के तहत ट्रीट किया जाए. किसी पर ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस वाले रूल लगाए जा रहे हैं तो किसी को ब्रोकरेज रेग्युलेशन के तहत चार्ज किया जा रहा है. लेकिन जीएसटी अधिकारियों के हवाले से आई रिपोर्टों में कहा गया है कि खुद इन एक्सचेंजों का बिजनेस मॉडल एक जैसा नहीं है. मसलन, वजीरएक्स जैसे एक्सचेंज पीयर टु पीयर (Peer to peer) डील कराते हैं और इसके एवज में कमीशन चार्ज करते हैं. उन्होंने इसी को अपनी इनकम बताई है. लेकिन यूनोक्वॉइन (Unocoin) और क्वॉइनस्विच कुबेर (Coinswitch Kuber) जैसे एक्सचेंज ब्रोकर या एग्रीगेटर्स के तौर पर काम कर रहे हैं. ये यूजर्स से उनके मुनाफे पर एक तय रकम चार्ज करते हैं.
अधिकारियों के मुताबिक इस मॉडल की जांच और रेग्युलेशन की ज्यादा जरूरत है. चूंकि जीएसटी कारोबार के वैल्यू एडिशन पर लगता है, ऐसे में यह हर उस स्टेप पर लगना चाहिए जहां मुनाफा कमाया गया है. यह तब संभव है, जब करेंसी को एक टैक्सेबल गुड्स या कमोडिटी माना जाए. वह भी तब, जब सरकार इसे मान्यता दे या रेग्युलेट करे.
कैसे होता है क्रिप्टो कारोबार?
क्रिप्टो करेंसी को आप मोटे तौर पर किसी छोले-भटूरे की दुकान वाला टोकन समझ लीजिए या थोक बाजारों में व्यापारियों और आढ़तियों के बीच चलने वाली हुंडी. यानी एक कागज की पर्ची, जिसका यों तो कोई मोल नहीं, पर लेने और देने वाले की नजर में यह सैकड़ों, हजारों या लाखों की हो सकती है. हुंडी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि इसे न तो कोई चोर लूट सकता है, न पुलिस पकड़ सकती है और न कोई अथॉरिटी टैक्स लगा सकती है. हुंडी की कीमत दो लोगों के बीच ही समझी जाती थी. लेकिन क्रिप्टो करेंसी के लेनदार और देनदार बेशुमार होते हैं. जो चीज इसे सबसे ज्यादा अलग बनाती है, वह है इसके चलन की तकनीक.
तकनीकी भाषा में कहें तो यह ब्लॉकचेन आधारित नेटवर्क से प्रसारित होने वाला एक डिजिटल डॉक्युमेंट है, जिस पर हर लेन-देन का सिग्नेचर होता है. हर ट्रांजैक्शन अपने आप में एक ब्लॉक होता है. असल में ब्लॉकचेन एक सॉफ्टवेयर प्रोटोकॉल है. ठीक वैसे ही जैसे हमारे ईमेल के लिए SMTP (Simple Mail Transfer Protocol) होता है. यह चेन बताती है कि कब करेंसी किसके हाथ से निकलकर किसके पास गई. ब्लॉकचेन फाइल किसी एक कंप्यूटर के बजाय पूरे नेटवर्क में रहती है. इस चेन में एक नया ब्लॉक जोड़ना ही, क्रिप्टो माइनिंग कहलाता है.
क्रिप्टो करेंसी खरीदने-बेचने के लिए आपको इस नेटवर्क से जुड़ना होगा. यहीं आपकी मदद करते हैं, क्रिप्टो एक्सचेंज. यहां आप ठीक वैसे ही एक खाता खुलवाते हैं, जैसे शेयरों के लिए डिमैट या ट्रेडिंग अकाउंट. फर्क सिर्फ इतना है कि ये एक्सचेंज सेल्फ रेग्युलेटेड हैं. यानी सरकारी नियम-कानूनों से परे. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि कैसे इन एक्सचेंजों का बिजनेस मॉडल अलग-अलग है. ऐसे में इनकी फीस भी मोटे तौर पर तीन तरह की होती है- एक्सचेंज फीस, नेटवर्क फीस और वॉलेट फीस. फिलहाल टैक्स एजेंसियां इसी फीस को कमाई मानकर इनकी टैक्स लाइबिलिटी तय कर रही हैं.
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क्रिप्टो खरीददारी के लिए कॉइनस्विच ने लॉन्च किया ‘रिकरिंग बाय प्लान’
भारत के सबसे बड़े क्रिप्टो प्लेटफॉर्म कॉइनस्विच ने ‘रिकरिंग बाय प्लान’ जारी किया है। इसके जरिये निवेशकों को भारत में ‘क्रिप्टो एसेट्स’ में सरल और सुनियोजित तरीके से निवेश करने में मदद मिलेगी। कॉइनस्विच के मुताबिक इस प्लान से निवेशकों को बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव और जल्दबाज़ी में की गई खरीद-बिक्री से बचने में मदद मिलेगी।
आशीष सिंघल, फाउंडर एवं सीईओ, कॉइनस्विच ने कहा कि “कॉइनस्विच में हम क्रिप्टो निवेश के सफर में यूज़र्स की मदद करना चाहते हैं। क्रिप्टो एक उभरता हुआ आकर्षक एसेट क्लास है। इसमें पारंपरिक निवेश के मुकाबले उतार-चढ़ाव भी काफी ज्यादा होते हैं। ‘क्वाइनस्विच रिकरिंग बाय प्लान’ की मदद से निवेशक सुनियोजित तरीके से क्रिप्टो खरीद सकते हैं और मार्केट को टाइम करने यानि सही मौका तलाशने की जल्दबाज़ी तथा ट्रेडिंग में भावनात्मक फैसले लेने से भी बच सकते हैं। साथ ही यह प्लान निवेशकों को योजनाबद्ध और अनुशासित रहकर, इस नए एसेट क्लास को समझने और इसमें निवेश करने में मददगार रहेगा।”
‘रिकरिंग बाय प्लान’ (RBP), की मदद से यूज़र्स लंबी अवधि में क्रिप्टो एसेट खरीदने के लिए हर महीने एक निश्चित रकम अलग से रख सकते हैं। इससे उनका ध्यान मार्केट में सही मौका तलाशने की बजाय लंबे समय के लिए रणनीति बनाने पर रहेगा।
कॉइनस्विच में निवेशक अपने वेरिफाइड बैंक अकाउंट से केवल भारतीय रुपए जमा कर सकते हैं। इस प्लेटफॉर्म पर केवल घरेलू भारतीय बैंक अकाउंट का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां यूज़र्स की जांच (राजनीतिक रूप से सक्रिय या उनसे संबंधित लोग, प्रतिबंधित लोगों की सूची, उनके बारे में नकारात्मक जानकारी के लिए) भी होती है और उनकी केवाईसी संबंधी जानकारियां ली जाती हैं।
यूज़र्स 3 आसान स्टेप्स में ‘रिकरिंग बाय प्लान’ (RBP) क्रिएट कर सकते हैं:
- बाय (खरीद) पेज पर जाकर ‘रिकरिंग बाय’ पर क्लिक करें और अपनी निवेश रकम चुनें
- अपनी सुविधानुसार एक तारीख चुनें, जो हर महीने रिपीट होगी
- ऑर्डर को कन्फर्म करें
यूज़र्स को इस बात का ध्यान रखना होगा कि भविष्य में / रिपीट ऑर्डर्स के लिए उनके कॉइनस्विच अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस रहे। प्लेटफॉर्म पर बाय ऑर्डर की अधिकतम सीमा 2,50,000 रुपए है। यूज़र्स एक क्रिप्टो के लिए सिंगल या एक से अधिक RBP क्रिएट कर सकते हैं।
क्रिप्टो करेंसी में निवेश के नाम पर सवा करोड़ गंवाए
देहरादून। क्रिप्टो करेंसी में निवेश कराने के नाम पर ठगों ने एक व्यक्ति के करीब सवा करोड़ रुपये हड़प लिए। शिकायत पर स्पेशल टास्क फोर्स ने मुख्य आरोपित को हिरासत में ले लिया है। उससे पूछताछ की जा रही है। टीम को ठगी में किसी बड़े गिरोह के शामिल होने की आशंका है।
क्रिप्टो करेंसी में निवेश कर मोटा मुनाफा कमाने का झांसा देकर जनता को ठगने का एक और मामला सामने आया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एसटीएफ अजय सिंह ने बताया कि कुछ दिन पूर्व दिनेश कुमार गुप्ता नाम के व्यक्ति ने साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में शिकायत दी। जिसमें बताया कि उन्हे सौरभ मैंदोला नाम के एक व्यक्ति ने खुद को फाइनेंस-प्लानर एंड एडवाइजर कंपनी का मालिक बताते हुए क्रिप्टो करेंसी में निवेश कराने की बात कही। क्रिप्टो करेंसी के जरिये आरोपित ने उन्हें मोटा मुनाफा कमाने का झांसा दिया और एक करोड़ 14 लाख रुपये हड़प ले लिए। इसके बाद आरोपी ने उन्हें पैसे नहीं लौटाए और न ही निवेश कराया। शिकायत पर साइबर क्राइम थाने में मुकदमा दर्ज कर छानबीन के लिए निरीक्षक त्रिभुवन रौतेला को सौंपा गया। इस दौरान आरोपी के मोबाइल नंबर, बैंक खातों व संबंधित ट्रेडिंग कंपनियों की जानकारी जुटाई गई। जिस पर सौरभ मैंदोला निवासी टर्नर रोड की ओर से शिकायतकर्ता के ट्रेडिंग खातों के पासवर्ड बदलने व नई आइडी बनाकर धोखाधड़ी करने की पुष्टि हुई। इसके बाद सौरभ मैंदोला को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई। जिसमें एसटीएफ को महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुईं। आरोपित के विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई कर गिरोह की भूमिका को लेकर भी पूछताछ जारी है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने बताया कि मामले में क्रिप्टो करेंसी में आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया जाएगा।
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भारत में क्या है क्रिप्टो का भविष्य? जानें CoinSwitch के CEO आशीष सिंघल के साथ
भारत में क्रिप्टो का भविष्य क्या है? क्या देश में वास्तव में क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगेगा? सरकार जो बिल लाने की योजना बना रही है वह किस तरह का है? क्या मुझे क्रिप्टोकरेंसी में निवेश जारी रखना चाहिए? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो बहुत से लोगों के दिमाग में हैं क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी में लाखों भारतीयों का कारोबार और निवेश जारी है.
Cryptocurrency Bill पर CoinSwitch के CEO आशीष सिंघल के साथ सवाल-जवाब.हर क्रिप्टो एक अलग एसेट
क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrencies) पर संसद में पेश किए जाने वाले एक नए बिल को लेकर हाल के समाचारों से भ्रम की स्थिति बनी है. शुरुआत में इससे घबराहट का माहौल बना था और देश में क्रिप्टोकरेंसी निवेशकों ने बिकवाली शुरू कर दी थी क्योंकि बैन की आशंका बढ़ गई थी. ऐसे में भारत में क्रिप्टो का भविष्य क्या है? क्या देश में वास्तव में क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगेगा? सरकार जो बिल लाने की योजना बना रही है वह किस तरह का है? क्या मुझे क्रिप्टोकरेंसी में निवेश जारी रखना चाहिए? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो बहुत से लोगों के दिमाग में हैं क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी में लाखों भारतीयों का कारोबार और निवेश जारी है.
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ऐसे कुछ बड़े प्रश्नों के उत्तर और सामान्य उलझनों को दूर करने के लिए, CoinSwitch Kuber ने कंपनी के CEO आशीष सिंघल के साथ हाल ही में एक AMA (Ask Me anything) सेशन आयोजित किया था. CoinSwitch अभी देश के सबसे बड़े क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों में से एक है. CoinSwitch के को-फाउंडर और CEO, आशीष ने इससे पहले CRUXPay, रीप बेनेफिट, अर्बन टेलर, माइक्रोसॉफ्ट और अन्य कंपनियों में काम किया है. उन्होंने नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से डिग्री ली है. उनके एक पावरफुल और यूजर-फ्रेंडली क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज शुरू करने के नजरिए का परिणाम CoinSwitch का लॉन्च है.
CoinSwitch के AMA में जिन प्रश्नों पर चर्चा की गई उनमें से कुछ यहां दिए जा रहे हैं:
प्रस्तावित बिल का भारत में क्रिप्टो के लिए क्या मतलब है?
आशीषः चलिए पहले प्रस्तावित क्रिप्टो बिल का इतिहास समझते हैं. हमें केवल बिल के शीर्षक की जानकारी है, जो पिछले साल लाए जाने वाले बिल के समान है. हालांकि, वह बिल संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया था और चीजें तब काफी अलग थीं. मौजूदा स्थितियों की बात की जाए तो भारत में क्रिप्टो कम्युनिटी इस अवधि में तेजी से बढ़ी है. लाखों लोग अब CoinSwitch और अन्य एप्लिकेशंस का हिस्सा हैं. क्रिप्टो को अब एक एसेट क्लास के तौर पर देखा जा रहा है और इसे केवल एक करेंसी की तरह नहीं मानना चाहिए. यह भविष्य में गूगल, एमेजॉन, आदि की तरह बन सकता है.
रकार क्रिप्टो के कॉन्सेप्ट को समझने की कोशिश कर रही है और इसके साथ ही उसकी सोच भी बदल रही है. हमें नहीं पता कि प्रस्तावित बिल में वास्तव में क्या है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने के लिए सरकार के बिल लाने के प्रस्ताव से एक प्रगतिशील क्रांति होगी.
क्या आप कहेंगे कि भविष्य अच्छा है?
आशीषः सबसे पहले, मेरी राय पक्षपात वाली है क्योंकि हम एक क्रिप्टो कंपनी चलाते हैं. हमारा मानना है कि क्रिप्टो से फाइनेंस इंडस्ट्री और कंपनी में फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव हो सकता है. अभी तक हमें प्रस्तावित क्रिप्टोकरेंसी बिल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. सरकार यह समझती है कि क्रिप्टो इंडस्ट्री बहुत बड़ी हो सकती है. वे मुख्यतौर पर निवेशकों को नुकसान पहुंचाने की आशंका वाले भ्रामक विज्ञापनों जैसी चीजों से चिंतित हैं. हमें सरकार को क्रिप्टो के फायदे और नुकसान के बारे में बताने और इंडस्ट्री को खुला रखने के साथ इसके गलत इस्तेमाल से बचने में उनकी मदद करने की जरूरत है.
हमें उम्मीद है कि प्रस्तावित बिल इंडस्ट्रीज और क्रिप्टो निवेशकों के लिए सकारात्मक होगा. क्रिप्टो को स्वीकृति मिलना ही हम सभी के लिए एक बड़ी उपलब्ध है. क्रिप्टो रेगुलेशन पर एक बिल लाना सरकार के लिए भी मुश्किल है क्योंकि हर दिन एक बिल्कुल नया कॉन्सेप्ट सामने आता है. एक रेगुलेशन बनाने का मतलब ऐसा बिल लाना है जो न केवल अभी बल्कि पांच वर्ष बाद भी कारगर होगा. बिल में क्रिप्टो को एक वर्ग में रखा जा सकता है और यूजर्स की सुरक्षा और इनोवेशन को बढ़ावा देने में मदद के लिए एक चरणबद्ध तरीके से क्रिप्टो को रेगुलेट किया जा सकता है.अगर क्रिप्टो पर बैन लगता है तो क्या होगा?
क्रिप्टो पर पूरी तरह बैन लगना टेक्नोलॉजी के नजरिए से काफी मुश्किल है क्योंकि प्रत्येक चीज आपस में जुड़ी है. एक्सचेंजों या क्रिप्टो को बैन करना समाधान नहीं हर क्रिप्टो एक अलग एसेट है. इसके संचालन के लिए रूपरेखा बनाना एक आदर्श समाधान हो सकता है. अगर बैन लगाया जाता है तो सरकार को यह सोचना होगा कि खुदरा निवेशकों ने क्रिप्टो में 6 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है.
पब्लिक और प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी के बीच क्या अंतर है?
आशीषः पब्लिक और प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसीज सरकार की क्रिप्टो के लिए व्याख्या है. इस बारे में हमारे पास अभी तक कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. यह व्याख्या पूरी तरह हमारी है – पब्लिक ब्लॉकचेन में इकोसिस्टम में यूजर हिस्सा ले सकता है और इंफ्रास्ट्रक्चर में एक बदलाव कर सकता है. प्राइवेट ब्लॉकचेन कुछ एंटिटीज के बीच बनाई गई एक ब्लॉकचेन हो सकती है. सरकार की समझ एक ब्लॉकचेन को जारी करने पर आधारित हो सकती है, पब्लिक और प्राइवेट कंपनियों को स्वीकृति देने के तरीके के समान.
क्या अभी क्रिप्टो को खरीदना, रखना या बेचना चाहिए?
आशीषः इस प्रश्न का उत्तर देना बहुत मुश्किल है. मार्केट में अभी काफी अनिश्चितता है. हमने अभी तक प्रस्तावित क्रिप्टो बिल नहीं देखा है. हमारे अनुभव से हम जानते हैं कि सरकार में लोग क्रिप्टो को अब सकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं. हालांकि, कुछ आशंकाएं भी हैं. मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि अपना फैसला खुद करें लेकिन आपका फैसला इस पर आधारित नहीं होना चाहिए कि कल क्या हुआ था. हमें उम्मीद है कि हमारे पास और जानकारी होगी जिससे निवेशक एक समझदारी वाला फैसला ले सकें. हमें तथ्यों के सामने आने का इंतजार करना होगा और तब आप अपना फैसला कर सकते हैं.