बचत एवं निवेश की बुनियादी बातें

बचत एवं निवेश की बुनियादी बातें
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क्या और अधिक विदेशी पूंजी की होगी जरूरत?
देश में आने वाला पूंजी प्रवाह दरअसल निवेश और बचत के बीच का अंतर है। आने वाले एक-दो वर्ष में निवेश और बचत दोनों में भारी बदलाव आ सकता है। काफी संभावना है कि चालू खाते के घाटे में भारी इजाफा होगा। ऐसे में शेष विश्व और देश की वित्तीय संबद्धता की राह रोकने वाली तमाम नीतिगत बाधाओंं को दूर करना होगा।
चालू खाते के घाटे की बात करें तो यह घरेलू निवेश और घरेलू बचत के बीच के अंतर के रूप मेंं परिलक्षित होता है। यदि हम देश में 35 रुपये का निवेश करते हैं और 30 रुपये की बचत करते हैं तो पांच बचत एवं निवेश की बुनियादी बातें रुपये के अंतर की भरपाई विदेशी पूंजी से होती है। यानी चालू खाते के घाटे का आकलन उपरोक्त निवेश और बचत के अंतर से होता है। यह कोई सिद्धांत नहीं है बल्कि यह अंकेक्षण समरूपता (अकाउंटिंग आइडेंटिटी) है।
विदेशों से धन प्राप्ति के लिए किसी केंद्रीय योजना या सरकार के किसी कदम की आवश्यकता नहीं होती। पूंजी खाता एक ऐसा राजमार्ग है जिससे देश के लोग बाजार ताकतों पर आधारित विदेशी पूंजी हासिल करते हैं। इससे देश में विदेशी वित्तीय प्रवाह सुनिश्चित होता है।
अगले एक या दो वर्ष के चालू खाते के घाटे का अनुमान
यह सवाल पूछना दिलचस्प है कि वर्ष 2020 और 2021 में निवेश और बचत तथा चालू खाता घाटे की स्थिति कैसी होगी? आम परिवारों की बचत में कमी आ सकती है क्योंकि तमाम परिवार कठिन समय के लिए पैसे बचाने की जुगत में लग जाएंगे। कॉर्पोरेट आय में कमी आएगी और कारोबारी समूहों की स्थापित आय भी घटेगी।
राजकोषीय घाटे में इजाफा हो सकता है। जब आम परिवारों की आय कम होगी तो आयकर भुगतान मेंं कमी आएगी। जब कंपनियों का राजस्व कम होगा तो वस्तु एवं सेवा कर भुगतान कम होगा। जब कंपनियों का मुनाफा कम होगा तो कॉर्पोरेट कर भुगतान में कमी आएगी। ऐसे में कराधान के तीनों घटकों में तेज गिरावट आएगी। इसके अलावा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसी सुविचारित सरकारी योजनाएं जिनमें लचीलेपन की क्षमता निहित है, उनका इस्तेमाल ऐसे बुरे समय में बढ़ेगा। ये सारे कारक मिलकर घाटे में काफी इजाफा करेंगे।
आज देश मेंं कोलाहल है और सरकार से मांग की जा रही है कि वह घाटे को बढऩे दे। हालात को स्थिर करने के लिए कारक पहले ही काम पर हैं और राजकोषीय घाटे में भारी इजाफे का समर्थन किया जा रहा है।
इन सारी बातों को एक साथ रखकर देखें तो यह साफ है कि समग्र बचत में कमी आएगी लेकिन सवाल यह है कि आखिर निवेश का क्या होगा?
पारंपरिक तयशुदा निवेश में कमी आएगी। निजी सकल जमा पूंजी निर्माण अतीत में जीडीपी के 16 फीसदी तक मूल्य हासिल करता रहा है। परंतु महामारी के आगमन के पहले ही यह घटकर जीडीपी का 5 फीसदी हो चुका था। ऐसे में आगे अधिक गिरावट की गुंजाइश नहीं है। कंपनियों में कार्यशील पूंजी की मांग बढ़ेगी क्योंकि आपूर्ति शृंखला की अनिश्चितता से ज्यादा इन्वेंटरी की मांग उठेगी और कंपनियों को परिचालन घाटे की भरपाई करनी होगी। सरकार की बुनियादी निवेश प्रक्रिया मेंं सीमित गिरावट आएगी। इन्हें एक साथ रखकर देखा जाए तो निवेश में गिरावट का स्तर बचत में गिरावट के स्तर से कम रह सकता है।
अगर ऐसा हुआ तो चालू खाते के घाटे में इजाफा होगा। फिलहाल भारत आश्वस्त करने वाली स्थिति में रहा है जहां भारत में निवेश इसलिए होता था क्योंकि यहां चालू खाते का घाटा कम था और बाहरी वित्त की जरूरत भी बहुत अधिक नहीं थी। अब हालात बदल चुके हैं। अब नीति निर्माताओं, वित्तीय फर्म और गैर वित्तीय फर्म सभी को नए तरीके से सोचना होगा।
वृहद नीति पर प्रभाव
सन 1981 और 1991 में भारत संकट में आया और उसे बड़े पैमाने पर विदेशी पूंजी की आवश्यकता पड़ी। इस पूंजी को जुटाने का सही तरीका यह है कि विभिन्न बाजारों, परिसंपत्ति वर्गों, वित्तीय उपायों और वित्तीय फर्म की मदद ली जाए। ऐसी विविधता का फायदा मिलता है। कोई एक चैनल नाकाम होता है लेकिन जब ढेर सारे चैनल हों तो स्थिरता अधिक रहती है। भारत ने पूंजी खाते पर बहुत ठोस अवरोध स्थापित किए हैं। वित्तीय नियमन, कराधान, पूंजी नियंत्रण और प्रवर्तन एजेंसियां आदि ने साथ मिलकर शेष विश्व में भारत के प्रति दुराग्रह उत्पन्न किया है। अब वक्त आ गया है कि इस लाइसेंस/परमिट/छापेमारी के राज में सुधार किया जाए।
निवेश और बचत के बीच के अंतर की भरपाई विदेशी पूंजी से की जाएगी। यह अंकेक्षण से जुड़ी पहचान है जिसे कोई नहीं बदल सकता। जितने ठोस प्रतिबंध होंगे लेनदेन की लागत और जोखिम उतना ही अधिक होगा। विनिमय दर का उतना ही ज्यादा अवमूल्यन होगा ताकि भारतीय परिसंपत्तियों को अधिक आकर्षक बनाया जा सके।
वित्तीय फर्म पर प्रभाव
वित्तीय कंपनियों की बात करें तो वित्तीय बिचौलियों की भूमिका काफी अहम होती है। वे असीमित वैश्विक पूंजी को देश के अंतिम उपभोक्ता से जोड़ती हैं। विभिन्न परिसंपत्तियों की बात करें तो भारत में जहां अच्छा प्रतिफल उपलब्ध हों वहां काफी बड़े अवसर भी होते हैं। परंतु इसके लिए मानव रिश्तों और विदेशों की भारी पूंजी तक सूचना का प्रसार भी आवश्यक होता है। आने वाले दो वर्ष का समय कम जोखिम वाली परिवर्तनीय पूंजी के भारत में निवेश के लिए आदर्श हो सकता है।
सबसे सहज संपर्क वह होता है जहां विदेशों से आने वाली डेट और इक्विटी पूंजी नकदीकृत प्रतिभूति कारोबार वाली शीर्ष 200 फर्म तक पहुंचती है और बदले में ये फर्म वित्तीय बिचौलियों का काम करते हुए इस पूंजी को अपने लाखों आपूर्तिकर्ताओं, वितरकों और खुदरा कारोबारियों तक पहुंचाती हैं। वित्तीय बाजार सुधार इस तादाद को 200 से अधिक कर सकते हैं।
विदेशी पूंजी को देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने के लिए वित्तीय नवाचार आवश्यक है। वित्तीय-आर्थिक नीति की नाकामी ने देश में वित्तीय-तकनीकी क्रांति को हताश किया है। प्रतिभूतिकरण एक अहम उपाय है जिसकी मदद से देश भर में तमाम नवाचार उत्पन्न होते हैं। इन्हें मुंबई के बॉन्ड बाजार से जोड़ा जा सकता है जहां अनिवासी भारतीय भी भागीदारी कर सकते हैं।
गैर वित्तीय कंपनियों पर प्रभाव
गैर वित्तीय कंपनियों को यह देखना चाहिए कि घरेलू वित्तीय तंत्र में पूंजी की पहुंच सीमित है। उन्हें वित्तीय बिचौलियों के साथ दिए जाने वाले समय और प्रयासों की प्राथमिकता तय करनी चाहिए और अनिवासी निवेशकों में भरोसा बढ़ रहा है। पूंजी का इस्तेमाल करने वालों को लाइसेंस/परमिट/छापेमारी की व्यवस्था से नुकसान पहुंचता है। अधिक जटिल ढांचों की स्थापना करना बेहतर है क्योंकि तार्किक कदम उठाने के लिए वे आवश्यक हैं।
(लेखक नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी, नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं।)
निवेश की बात: इक्विटी में निवेश से हुई तगड़ी कमाई, इसकी सुरक्षा पक्की करने के लिए डेट में लगाएं पैसा
2021 आखिरी पड़ाव पर है। यह साल काफी हद तक कोविड महामारी से प्रभावित रहा। महंगाई चरम पर पहुंची और आम लोगों की बचत में बड़ी सेंध लगी। इस बीच शेयर बाजार नई ऊंचाई छूकर लौटा, हालांकि सोना 2020 के रिकॉर्ड लेवल से नीचे ही रहा। माना जा रहा है कि 2022 ज्यादा स्थिर और सहूलियतों वाला साल होगा।
सर्विसेज और पर्यटन जैसे जो क्षेत्र इस साल रिकवरी में पीछे रह गए, नए साल में उनका बिजनेस भी चल पड़ेगा। कुल मिलाकर हालात बदलेंगे। ऐसे में निवेश पोर्टफोलियो में भी बदलाव जरूरी है। इस बार पोर्टफोलियो समीक्षा में डेट की बड़ी भूमिका रहेगी।
सेंट्रल बैंकों के बाजार में झोकने से महंगे हुए शेयर
दरअसल, 2008 से अब तक दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने लगभग 25,000 अरब डॉलर (करीब 1,890 लाख करोड़ रुपए) बाजार में झोके हैं और अब भी मनी प्रिटिंग जारी है। इसके चलते शेयरों के दाम काफी बढ़ गए हैं और डेट समेत अन्य एसेट क्लास फीके नजर आ रहे हैं। लेकिन अब भी उनकी अहमियत कम नहीं हुई है।
इक्विटी बाजार में जो रिस्क बढ़ा है, उससे सुरक्षा के लिए डेट इंस्ट्रूमेंट्स काम आएंगे। ICICI प्रूडेंशियल एएमसी के ईडी और सीआईओ एस. नरेन आपको बजा रहे हैं कि आने वाले एक साल में आपको निवेश को लेकर किस तरह की रणनीति रखनी चाहिए।
एसेट एलोकेशन
पोर्टफोलियो में आम तौर पर इक्विटी, डेट और गोल्ड जैसे एसेट होते हैं। इनमें से किसमें कितना पैसा लगाना है (एसेट एलोकेशन), यह निवेश के लक्ष्य और निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है। आम तौर पर देखा गया है कि शेयर बाजार में तेजी के दौरान निवेशक एसेट एलोकेशन की बुनियादी बातें नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन यदि आप अगले 5 साल में निवेश से शानदार रिटर्न चाहते हैं तो एसेट एलोकेशन का ध्यान रखें। 1994, 1999 और 2007 में जिन निवेशकों ने ऐसा किया था, वे काफी फायदे में रहे थे।
बैलेंस्ड अप्रोच से फैसले करें, भावनाओं में न बहें
बैलेंस्ड अप्रोच का मतलब है बीते कुछ वर्षों के रुझान को ध्यान में रखते हुए फैसले करना। बीते साल मिड और स्मॉल कैप शेयरों में निवेश अच्छी रणनीति थी, क्योंकि भारी गिरावट के चलते वे अच्छे भाव पर उपलब्ध थे। हो सकता है 2022 में अलग तरह के हालात हों। ऐसे में बूस्टर एसटीपी जैसे टूल मददगार साबित हो सकते हैं। इस सिस्टमेटिक ट्रांसफर प्लान में मार्केट वैल्यूएशंस के आधार पर तय समय में एक स्कीम से दूसरे स्कीम में रकम ट्रांसफर की जाती है। यह हर परिस्थिति का फायदा उठाने का उम्दा तरीका है।
कंजरवेटिव बनना बेहतर
बाजार में जब तेजी का रुझान हो तो निवेश के मामले में कंजरवेटिव अप्रोच यानी पोर्टफोलियो में बदलाव न करने की रणनीति अच्छा काम करती है। इसका मतलब है, लालच में न पड़ते हुए एसेट एलोकेशन बनाए रखना। एक बात हमेशा याद रखें जल्द अमीर बनने का कोई फॉर्मूला नहीं होता है। इसलिए डेरिवेटिव ट्रेडिंग में सावधानी बरतें। बाजार जब ऐतिहासिक ऊंचाई पर हो तब निवेश के मामले में कंजरवेटिव बने रहें, बचत एवं निवेश की बुनियादी बातें लेकिन जैसे ही बाजार गिरकर निचले स्तर पर आ जाए तब आक्रामक खरीदारी शुरू कर दें। कभी भी इस रणनीति के उलट व्यवहार न करें।
डेट में निवेश करने का सही वक्त
डेट मुनाफा कमाने का जरिया नहीं, बल्कि पूंजी सुरक्षित रखने का तरीका है। डेट में निवेश से रिटर्न कम मिल सकता है, लेकिन पूंजी की सुरक्षा बनी रहेगी। जिन निवेशकों ने डेट में पैसा लगाया था और 2020 में बाजार गिरने पर इक्विटी में स्विच किया, उन्हें काफी मुनाफा हुआ। मार्च 2020 में जिन्होंने कमाई के लिए इक्विटी का रुख किया था, अब उन्हें अपना पैसा सुरक्षित रखने के लिए डेट में निवेश करना चाहिए।
एंजॉयमेंट का ध्यान रखें, तनाव न लें
निवेश यदि आपको तनाव दे रहा हो तो समझ लीजिए कि कुछ गलत हो रहा है। पैसा कमाने का उद्देश्य ही तनाव मुक्त रहना होता है। इसलिए यह बात काफी अहमियत रखती है कि निवेश और अन्य स्रोतों से जो कमाई आप कर रहे हैं, उस पैसे का इस्तेमाल मौज-मस्ती (एंजॉयमेंट) के लिए भी करें। इससे आपके भीतर एनर्जी बनी रहेगी। ऐसे में सही फैसलों की संभावना बढ़ेगी।
फंड ऑफ फंड्स आजमाएं और निश्चिंत रहें
यदि आप कंफ्यूज हो रहे हों तो फंड ऑफ फंड्स (एफओएफ) आजमाएं और सारे फैसले फंड मैनेजर पर छोड़ दें। एफओएफ दुनिया में जहां कहीं भी मौके मौजूद हों, वहां निवेश करने की सुविधा देता है। एफओएफ के मैनेजर न केवल इक्विटी, बल्कि ईटीएफ और अन्य एसेट मैनेजमेंट कंपनियों की स्कीम्स में भी निवेश करते हैं।
How To Earn From Savings: सिर्फ पैसा बचाएं नहीं बल्कि उससे और धन भी कमाएं, ऐसे करें निवेश
पर्सनल फाइनेंस के बुनियादी सिद्धांतों में से एक होता है बचत करने की आदत डालना। यह किसी भी व्यक्ति के मुश्किल समय के लिए जरूरी होता है। मुश्किल समय में और खासकर कोविड-19 जैसी परिस्थितियों में कई लोगों के लिए सेविंग करना सबसे अहम हो जाता है।
Personal Finance: पर्सनल फाइनेंस के बुनियादी सिद्धांतों में से एक होता है बचत करने की आदत डालना। यह किसी भी व्यक्ति के मुश्किल समय के लिए जरूरी होता है। मुश्किल समय में और खासकर कोविड-19 जैसी परिस्थितियों में कई लोगों के लिए सेविंग करना सबसे अहम हो जाता है। मौजादा समय में यह सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बन गया है। हालांकि, पैसे का एक और समान रूप से अहम पहलू है जो जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी बन जाता है- निवेश। जिस प्रकार आपके लिए सेविंग जरूरी है, उसी प्रकार मजबूत वित्तीय स्थिति के लिए निवेश भी आवश्यक है।
महंगाई दर को मात देने के लिए जरूरी है निवेश
जब आपको संकट की किसी परिस्थिति से निकलने के लिए अचानक वित्तीय सहायता की जरूरत पड़ती है तो उस वक्त आपकी बचत आपके काम आती है। वहीं, एक और चीज है जो लगातार लोगों की चिंता बढ़ाती रहती है और वह है- महंगाई। महंगाई रुपये की क्रय शक्ति को कम कर देती है और इसका पैसे की बढ़ोत्तरी पर विपरीत असर देखने को मिलता है। ऐसे में अगर आज आपके हर महीने का खर्च 30,000 रुपये है तो 5% की महंगाई दर के साथ 20 साल बाद वह 80,000 रुपये हो जाएगा।
ऐसे में केवल सेविंग करने और निवेश नहीं करने से आपको लंबी अवधि में परेशानी का सामना करना पड़ेगा। दूसरी ओर, निवेश करने से आपकी धनराशि महंगाई दर के अनुपात में बढ़ेगी और यह सुनिश्चित होगा कि आपके पास खर्चे को पूरा करने के लिए जरूरी धनराशि हो। निवेश करते समय भी आपको इस बात पर ध्यान देकर महंगाई दर को मात देने वाले इंस्ट्रुमेंट्स में निवेश करना होगा। ऐसे वक्त में इक्विटी लंबी अवधि में महंगाई दर को मात देने वाला निवेश का माध्यम बनकर उभरता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इक्विटी में निवेश आपको महंगाई दर से निपटने और उससे अधिक रिटर्न पाने में मदद करता है।
आप स्टॉक या म्युचुअल फंड के जरिए इक्विटी में निवेश कर सकते हैं। अगर आप इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि आप शेयर बाजार की उतार-चढ़ाव को ट्रैक कर सकते हैं और आप महज संख्या से इतर की चीजों को भी पढ़ सकते हैं, जिसके बाद आप सीधे शेयरों में निवेश कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो म्युचुअल फंड बेहतर विकल्प है क्योंकि इसमें फंड मैनेजर के अनुभव से आपके निवेश का अच्छे से विविधीकरण हो पाता है और आपकी रकम बढ़ती है।
अपनी रकम को बढ़ने दीजिए
अगर आप पैसे को अपनी अलमारी या बचत खाते में रखकर छोड़ देते हैं तो उससे वह नहीं बढ़ेगा। हालांकि, बचत खाते पर आपको ब्याज मिलता है लेकिन उसकी दर काफी कम होती है। दूसरी ओर, अलमारी में ऐसे ही पड़ा हुआ पैसा तो किसी भी तरह नहीं बढ़ता है। लेकिन अगर आप पैसों को निवेश करते हो तो चीजें अलग हो जाती हैं। अगर आप बैंक एफडी करते हैं या बाजार से जुड़े म्युचुअल फंड्स में निवेश करते हैं तो समय के साथ आपके पास एक अच्छी रकम इकट्ठा हो बचत एवं निवेश की बुनियादी बातें जाती है। ऐसे में आपको समय के साथ अपनी रकम में वृद्धि के लिए धनराशि का निवेश करना होगा।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि कार खरीदने, छुट्टी पर जाने, बच्चों की उच्च शिक्षा और रिटायरमेंट जैसे जीवन के विभिन्न लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आपके पास पर्याप्त पैसे हों। निवेश करने से यह भी सुनिश्चित होता है कि फंड्स की कमी के कारण आपके लक्ष्य प्रभावित ना हों। यह आपके सपने को साकार करने के लिए लोन और अन्य वित्तीय माध्यमों पर आपकी निर्भरता कम कर देता है।
निष्कर्ष
भारतीय वित्तीय बाजारों में विभिन्न प्रोडक्ट्स में निवेश के काफी अवसर मौजूद हैं। वित्तीय आजादी के लिए अपने लक्ष्य और जोखिम लेने की क्षमता के हिसाब से निवेश कीजिए।
(यह लेखक राहुल जैन के निजी विचार हैं, जो एडलवाइस वेल्थ मैनेजमेंट के पर्सनल वेल्थ विंग के अध्यक्ष और प्रमुख हैं।)