विदेशी मुद्रा बाजार को कैसे विनियमित किया जाता है

विदेशी मुद्रा बाजार को कैसे विनियमित किया जाता है
देश में और अधिक आर्थिक सुधारों की जरूरत बताते हुए अब तक हुए सीमित सुधारों की वजह तलाश रहे हैं अशोक लाहिड़ी
भारत ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत सन 1991 में पी वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में की थी। उस वक्त मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। उससे पिछली सरकारें जहां सुधार से दूर रही थीं, वहीं राव सरकार ने बाहरी, मौद्रिक, वित्तीय और राजकोषीय तमाम क्षेत्रों में सुधारों को अंजाम दिया। नियंत्रण आधारित व्यवस्था से बाजार आधारित व्यवस्था की ओर किए गए इस प्रस्थान के दौरान ही सन 1991 में औद्योगिक लाइसेंसिंग का अंत हो गया। गैर कृषि उत्पादों पर सीमा शुल्क की दरों को कम करने का क्रम शुरू हुआ और यह 300 फीसदी से घटते-घटते वर्ष 2007-08 में 10 फीसदी रह गई। मार्च 1993 से अधिक उदार और एकीकृत विनिमय दर व्यवस्था लागू की गई और अगस्त 1994 से चालू खाते की परिवर्तनीयता आरंभ हुई।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को जुलाई 1991 से उदार बनाया गया। सांविधिक तरलता दर और नकद आरक्षित अनुपात (एसएलआर और सीआरआर) को कम करके वित्तीय दबाव कम किया गया। ब्याज दरों को विनियमित किया गया। पूंजी पर नियंत्रण के मसले को निपटाया गया और बाजार नियामक सेबी को सक्रिय बनाया गया। वर्ष 1990-91 में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 8.3 फीसदी के बराबर था जो दो सालों में घटकर 5.9 फीसदी पर आ गया। चीन के दिग्गज नेताओं के रूप में माओ के पतन और तंग श्याओ फिंग के उभार को सन 1979 में चीन में हुए आर्थिक सुधारों के संदर्भ में समझा जा सकता है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर भारत में सन 1991 से अब तक कितना सुधार हुआ है? सन 1970 के दशक में जब तंग ने चीन में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू किया तो आखिर भारत अपनी पुरानी वैचारिक नीतियों मसलन औद्योगिक लाइसेंसिंग और प्रतिबंधित विदेशी कारोबार के साथ क्यों आगे बढ़ता रहा? राजनीतिक उठापटक के चलते सन 1970 के दशक के आखिरी वर्ष और 1980 के दशक का आरंभ भारत में आर्थिक सुधारों के लिए अनुकूल नहीं था। इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया 21 महीने का आपातकाल मार्च 1977 में समाप्त हुआ। उसके बाद चुनाव हुए और जनता पार्टी सत्ता में आई।
अपने विरोधाभासी स्वभाव और विभिन्न धड़ों में मतभेद के चलते सरकार सुधार पर ध्यान नहीं दे सकी और महज ढाई साल में उसका पतन हो गया। 14 जनवरी 1980 को इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आईं। अब तक उनके अंदर काफी कुछ बदल चुका था। 23 जून 1980 को उनके उत्तराधिकारी माने जाने वाले छोटे बेटे संजय की एक दुर्घटना में मौत हो गई। उसके बाद सन 1981 में अंतुले के इंदिरा प्रतिष्ठान को लेकर विवाद हुआ और सन 1984 में पंजाब में सिख अलगाववादी आंदोलन शुरू हो गया। इन बातों ने इंदिरा गांधी का ध्यान आर्थिक सुधारों से दूर किए रखा। 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी उनके उत्तराधिकारी बने। लेकिन दिसंबर 1984 के चुनावों में जबरदस्त जीत के बाद बहुत जल्दी वह बोफोर्स तोप से जुड़े विवाद में उलझ गए।
सन 1989 के चुनाव में उनको पराजय का मुंह देखना पड़ा। 2 दिसंबर 1989 को भाजपा और वाम दलों के सहयोग से राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी। राजीव गांधी की कांग्रेस से विद्रोही तेवर दिखाकर निकले विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की कोशिश की लेकिन उनकी इस कोशिश को बहुत बड़े पैमाने पर हिंसक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इस बीच बाबरी मस्जिद विवाद ने पूरे देश को आंदोलित किया। सिंह की सरकार एक साल भी नहीं चल पाई। भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। चंद्रशेखर केवल 64 सांसदों के समर्थन के साथ 19 नवंबर 1990 को देश के प्रधानमंत्री बने। उन्हें कांग्रेस का बाहरी समर्थन हासिल था।
कांग्रेस ने 2 मार्च 1991 को इस आधार पर समर्थन वापस ले लिया कि हरियाणा के दो पुलिसकर्मी राजीव गांधी के आवास के बाहर संदिग्ध हालात में देखे गए। चंद्रशेखर ने 6 मार्च को इस्तीफा दे दिया और देश में एक बार फिर चुनाव हुए। 21 मई 1991 को राजीव गांधी की श्रीपेरुंबुदूर में चुनाव रैली के दौरान हत्या कर दी गई। कांग्रेस ने हत्या के बाद वाले दौर में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन उसे इतनी सीट नहीं मिलीं कि वह अपने दम पर सरकार बना सके। उसने वाम दलों के बाहरी समर्थन से अल्पमत सरकार बनाई। पी वी नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री बने और इस तरह चीन में सुधारों की शुरुआत के 12 साल बाद भारत में सुधारों की शुरुआत हुई।
किसी लोकतांत्रिक देश में सुधारों की शुरुआत करने और उन्हें लागू रखने की समस्याएं जगजाहिर हैं। रॉब जेनकिंस की दलील है कि उद्योगपति सुधारों के तगड़े विरोधी होते हैं क्योंकि उनको विदेशी प्रतिस्पर्धा से डर लगता है। वहीं राजनेताओं और नौकरशाहों को यह भय होता है कि वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर पाएंगे। ऐसे में वे मिल जाते हैं। जेनकिंस जैसे कुछ विद्वान इस बात की व्यख्या करते हुए कहते हैं कि सत्ताधारी शीर्ष वर्ग चतुराईपूर्ण ढंग से आर्थिक सुधारों को आम जन की राजनीति से दूर रखते हैं। संघीय व्यवस्था में राज्य सरकारों को छोड़ दिया जाता कि वे कुछ अप्रिय कदम उठाकर लोगों का ध्यान बंटाएं। बाबरी मस्जिद दिसंबर 1992 में ढहाई गई। आशुतोष वाष्र्णेय के मुताबिक हिंदुत्व और जाति आधारित पूर्वग्रहों ने लोगों का ध्यान आर्थिक सुधारों से दूर कर दिया था। कहा जा सकता है कि इन सुधारों को चुपके से अंजाम दिया गया।
इसके अलावा सुधारों को उस वक्त अंजाम दिया गया जब भुगतान संतुलन चल रहा था और मुद्रास्फीति बढ़ी हुई थी। सन 1980 के दशक की 5.4 फीसदी की आकर्षक सालाना वृद्घि दर उधार के पैसे पर अर्जित की गई थी। गंभीर वृहद आर्थिक और ढांचागत असंतुलन निर्मित हो चुका था। संकट की स्थिति बन रही थी। इस आग में घी का काम किया खाड़ी युद्घ ने। कच्चे तेल के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो गए और भारत इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ। पश्चिम एशिया से होने वाले धन प्रेषण पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। जुलाई 1991 में जब देश के पास बमुश्किल एक अरब डॉलर से भी कम विदेशी मुद्रा बची थी तब सुधारों को अंतरराष्टï्रीय मुद्रा कोष की जो मदद मिली वह विकल्प के बजाय आवश्यकता बन चुकी थी।
भारत विदेशी मुद्रा बाजार को कैसे विनियमित किया जाता है ने सुधार करने में देरी की लेकिन वृद्घि दर, मूल्य स्थिरता और भुगतान संतुलन के मोर्चे पर हमें इसके काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिले लेकिन यह तेजी चीन के मुकाबले कुछ नहीं थी। ऐसे में यह सवाल पूछना जायज है कि देश में इतने सीमित सुधार क्यों किए गए? शायद चुपके से किए गए सुधारों की अपनी सीमा होती है। अब देश के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सुधारों को बड़े पैमाने पर गहराई से अंजाम दिया जाना चाहिए। मध्य वर्ग के उदय और आकांक्षाओं की राजनीति के बीच हमें अब प्रतीक्षा करनी होगी कि ये सुधार वास्तव में कितने गहरे हैं और कितनी दूरी तय करते हैं।
Bank Timing change: आज से बदला बैंकों के खुलने का समय, जानिए क्या होगी नई टाइमिंग, ATM से जुड़ा क्या है नया ऐलान
Bank Timing change: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI Change bank timing) ने 4 दिन बैंक बंद रहने के बाद सोमवार (18 अप्रैल 2022) से बैंकों के खुलने के समय में बदलाव कर दिया गया है.
Bank Timing change: बैंक ग्राहकों के लिए बड़ी खबर है. अब आपको बैंक से जुड़े कामकाज निपटाने के लिए 1 घंटे एक्स्ट्रा समय मिलेगा. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने 18 अप्रैल 2022 से बाजार के कारोबारी समय (RBI Increase Market trading hours) से लेकर बैंकों के खुलने (Bank opening timing) के समय में बदलाव कर दिया है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI Change bank timing) ने 4 दिन बैंक बंद विदेशी मुद्रा बाजार को कैसे विनियमित किया जाता है रहने के बाद सोमवार (18 अप्रैल 2022) से बैंकों के खुलने के समय में बदलाव कर दिया गया है.
अब 9 बजे खुलेंगे सभी बैंक
सोमवार से बैंक सुबह 9 बजे ही खुल जाएंगे. इससे ग्राहकों को अपना काम कराने के लिए एक घंटा अतिरिक्त समय मिलेगा. हालांकि, बैंकों के बंद होने के समय में कोई बदलाव नहीं किया गया है. मतलब बैंक पहले के टाइम से ही बंद होंगे. बता दें, कोरोना वायरस महामारी (Covid-19 cases) के चलते बैंकों के दिन में खुलने के समय को घटा दिया गया था. लेकिन, इसे अब फिर से सामान्य कर दिया गया है. देश में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) समेत 7 सरकारी बैंक हैं. इनके अलावा देश में 20 से ज्यादा प्राइवेट बैंक हैं. इन सभी बैंकों पर नया नियम लागू होगा.
बाजारों में ट्रेडिंग का समय भी बदला
RBI ने बैंकों के साथ-साथ विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार और सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन अब बदले हुए समय के साथ ही हो पाएगा. 18 अप्रैल 2022 से, विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स, रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव्स, कॉरपोरेट बॉन्ड्स में रेपो सहित विदेशी मुद्रा (FCY)/ भारतीय रुपया (INR) ट्रेड्स जैसे RBI विनियमित बाजारों में ट्रेडिंग अपने पूर्व-कोविड समय यानी सुबह 10 बजे के बजाय 9:00 बजे सुबह से शुरू होंगे.
कार्ड लेस ATM से ट्रांजैक्शन की सुविधा जल्द
RBI ने बैंक ग्राहकों के लिए ATM से जुड़ा एक नया ऐलान भी किया है. बैंकों में अब कार्ड लेस ATM से ट्रांजैक्शन की सुविधा देने की तैयारी चल रही है. ग्राहक UPI के जरिए बैंकों और ATM से पैसे निकाल सकेंगे. RBI कार्डलेस यानी बिना कार्ड के इस्तेमाल वाले ट्रांजैक्शन को बढ़ाने के लिए ऐसा करने जा रहा है।. ऐसा करने के लिए UPI के जरिए सभी बैंकों और उनके ATMs से पैसे निकासी की सुविधा दी जाएगी.
ATM से जुड़े फ्रॉड में आएगी कमी
RBI का मानना है कि कार्डलेस ट्रांजैक्शन का फायदा ये है कि इससे ATM से जुड़े फ्रॉड में कमी आएगी. साथ ही कार्डलेस ट्रांजैक्शन से लेनदेन में आसानी होगी और कार्ड क्लोनिंग की शिकायतों में कमी आएगी. कार्ड की चोरी होने पर भी दूसरे कई तरह के फ्रॉड रोकने में भी मदद मिल सकती है.
iGaming in India: क्या भारत में आईगेमिंग लीगल है, इसका विकास कैसे हुआ, जानें इससे जुड़ी जानकारी
तमिलनाडु पर पूर्ण प्रतिबंध में रमी और पोकर जैसे खेल शामिल हैं. इस बदलाव के साथ, बैंकों, अन्य वित्तीय संस्थानों और पेमेंट गेटवे को जुए से संबंधित लेनदेन में शामिल होने की अनुमति नहीं होगी.
भारत के ऑनलाइन गेमिंग उद्योग ने पिछले कुछ वर्षो में भारी वृद्धि देखी है। लेकिन क्या देश में ऑनलाइन जुआ खेलना कानूनी है? आईएएनएस एक नजर डालता है कि कैसे गेमिंग बाजार को विनियमित किया जाता है जो देश में विकसित हुआ है. यह भी पढ़ें: अर्जुन देशवाल के शानदार प्रयास ने पिंक पैंथर्स को पटना पाइरेट्स पर जीत दिलाई
रिकॉर्ड के लिए, भारत में केवल तीन राज्य- गोवा, दमन और सिक्किम हैं, जहां आईगेमिंग को विनियमित किया जाता है. हालांकि, कानूनी रूप से केवल तीन राज्यों में जुआ खेलने के साथ, बाकी देश अभी भी अपने पसंदीदा कैसीनो खेल खेलने और क्रिकेट जैसे खेलों पर दांव लगाने में सक्षम है. इसका श्रेय इंटरनेट को जाता है.
पाठकों के मन में विचार करने के लिए, मुख्य रूप से गेमिंग को भारत में 1867 के सार्वजनिक गेमिंग अधिनियम के आधार पर नियंत्रित किया जाता है। लेकिन, यह केवल सार्वजनिक जुए और देश के अधिकांश हिस्सों में आम गेमिंग हाउस के संचालन के लिए दंड प्रदान करने का एक अधिनियम है.
भारत में शीर्ष ऑनलाइन क्रिकेट-सट्टेबाजी साइट- 10सीआरआईसी उन लोकप्रिय गेमिंग साइटों में से एक है जहां स्थानीय लोग अक्सर आते हैं.
इसलिए, यह भारत में जुआ गतिविधियों के किसी भी स्थानीय संचालन की अनुमति नहीं देने के बारे में है और चूंकि यह कानून 1867 में पारित किया गया था, इसलिए इसमें ऑनलाइन जुआ गतिविधियों का कोई उल्लेख नहीं है. अब, यह ऑनलाइन जुए को न तो कानूनी बनाता है और न ही अवैध.
आज तक, यह एकमात्र कानून है जो भारत में गेमिंग गतिविधियों को नियंत्रित करता है। यहां तक कि 2000 के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में भी ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों का कोई उल्लेख नहीं है इसलिए, यह भारतीयों को अपना दांव ऑनलाइन लगाने के लिए स्वतंत्र बनाता है.
भले ही भारत के कुछ हिस्सों में कानूनी कैसीनो चल रहे हों, लेकिन हर कोई अपने पसंदीदा गेम खेलने के लिए हर समय इन कैसीनो की यात्रा करने को तैयार नहीं है. लोगों के लिए जुआ खेलने का सबसे सुविधाजनक तरीका ऑनलाइन होता है, इसलिए भारत की बढ़ती ऑनलाइन आबादी के साथ, ऑनलाइन गेमिंग भी अधिक प्रमुख हो गया है.
भारत में ऑनलाइन गेमिंग के उदय के साथ जोखिम आता है और तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे कुछ राज्य पिछले एक साल में मदद करने की कोशिश कर रहे हैं.
हाल ही में, तमिलनाडु पहले ही घोषणा कर चुका है कि राज्य में अब ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. फिर अन्य ऑनलाइन गेम को विनियमित किया जाएगा.
तमिलनाडु पर पूर्ण प्रतिबंध में रमी और पोकर जैसे खेल शामिल हैं। इस बदलाव के साथ, बैंकों, अन्य वित्तीय संस्थानों और पेमेंट गेटवे को जुए से संबंधित लेनदेन में शामिल होने की अनुमति नहीं होगी.
इस कानून के आधार पर, नए नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को एक साल तक की कैद और पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. वही ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों का विज्ञापन करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए भी यही विदेशी मुद्रा बाजार को कैसे विनियमित किया जाता है नियम है.
इस बीच, राज्य में अपनी सेवाओं की पेशकश करने वाले ऑनलाइन गेमिंग सेवा प्रदाताओं को तीन साल तक की कैद और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है.
1 अक्टूबर को राज्य मंत्रिमंडल ने इस अध्यादेश के मसौदे को मंजूरी दी और इसे राजभवन भेजा गया। इस कानून की प्रभावशीलता की घोषणा आने वाले दिनों में की जाएगी.
कुछ ग्रुप चाहते हैं कि तमिलनाडु सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करे। ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के सीईओ रोलैंड लैंडर्स ने इस बारे में बात की। लैंडर्स ने कहा, "प्रतिबंध का राज्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और यह अधिक से अधिक लोगों को अवैध अपतटीय वेबसाइटों की ओर धकेलेगा."
"यह निराशाजनक है क्योंकि यह स्थापित कानूनी न्यायशास्त्र के छह दशकों और मद्रास उच्च न्यायालय के हालिया फैसले की अवहेलना करता है जिसने इसी तरह के कानून को खारिज कर दिया था."
कर्नाटक का ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास :
तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला भारतीय राज्य नहीं है.
राज्यपाल थावर चंद विदेशी मुद्रा बाजार को कैसे विनियमित किया जाता है गहलोत द्वारा पुलिस अधिनियम 1963 में बदलाव को मंजूरी देने के बाद कर्नाटक ने भी पिछले साल अक्टूबर में ऑनलाइन गेम पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
हालांकि, इस साल की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने संशोधनों को रद्द कर दिया। बेंच के अनुसार, परिवर्तन को असंवैधानिक और बहुत अधिक माना गया था.
"इस अदालत के सुविचारित दृष्टिकोण में, कौशल के सभी खेलों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाली विधायी कार्रवाई आनुपातिकता के सिद्धांत की अवहेलना करती है और प्रकृति में बहुत अधिक है और इसलिए मनमानी के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है."
कोर्ट ने आगे बताया, "संशोधन अधिनियम धारा 2(7) के बाद से इस तरह की दुर्बलता से ग्रस्त है, जिसमें शामिल कौशल की परवाह किए बिना सभी खेलों को शामिल किया गया है, प्रधान अधिनियम के चार्जिग प्रावधानों को इतना अस्पष्ट बना देता है कि सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति स्थिति में नहीं होंगे इसके सही अर्थ का अनुमान लगाना और इसके आवेदन के दायरे में भिन्नता है और इसलिए इसे रद्द किया जा सकता है."
कर्नाटक के साथ जो हुआ, अब यह कई लोगों के लिए सवाल है कि क्या तमिलनाडु भी इसी तरह से गुजरेगा. अभी के लिए, स्थानीय लोगों को यह देखना होगा कि क्या उच्च न्यायालय तमिलनाडु सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करेगा या नहीं.
कानून जानें: अगर विदेशी करेंसी में करते है व्यापार तो रखें बातों का ध्यान
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 भारत में विदेशी मुद्रा से संबंधित समेकित कानून है. यह बाहरी व्यापार और भुगतान की सुविधा प्रदान करता है और भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देता है.फेमा का मुख्य उद्देश्य देश के विदेशी मुद्रा संसाधनों का संरक्षण तथा उचित उपयोग करना था. इसका उद्देश्य भारतीय कंपनियों द्वारा देश के बाहर तथा भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा व्यापार के संचालन के कुछ पहलुओं को नियंत्रित करना भी है. यह एक आपराधिक विधान था, जिसका अर्थ था कि इसके उल्लंघन के परिणामस्वरूप कारावास तथा भारी अर्थ दंड के भुगतान की सजा दी जाएगी.
फेमा कानून को नए रूप में लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य विदेशी विनिमय बाजार और व्यापार को और अधिक सरल बनाना है. संवैधानिक रूप से फेमा में लिखित प्रावधान के अनुसार भारत से बाहर रह रहा वो व्यक्ति जो कभी भारत का नागरिक था, वह भारत में अधिग्रहण व अचल संपत्ति में निवेश कर सकता है.
फेमा के कानूनों के बारे में जानना महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि सरकार के वर्तमान मूड और व्यवसाय देश में बहुत से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को आमंत्रित करते हैं और आपके लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप ऐसे कानूनों को समझें जिनके अंतर्गत ऐसे विदेशी लेनदेन हो सकते हैं या कार्य शुरू किये गए हो.
फेमा की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं में शामिल हैं:
यह पूर्णरूप से चालू खाते की परिवर्तनीयता के अनुरूप है और इसमें पूंजी खाते के लेन-देन हेतु प्रगतिशील उदारीकरण के प्रावधान हैं.
इसकी आवेदन प्रक्रिया बहुत पारदर्शी है और इसमें विदेशी मुद्रा के अधिग्रहण/ जमाखोरी पर रिजर्व बैंक या भारत सरकार के निर्देश बिलकुल स्पष्ट हैं.
फेमा के तहत विदेशी मुद्रा लेनदेन को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:
पूंजी खाता
चालू खाता
- यह भारत में रहने वाले एक व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह भारत के बाहर संपत्ति को खरीद सकता है मालिक बन सकता है और उसका मालिकाना हक़ भी किसी और को दे सकता है (जब वह विदेश में रहता था)
- यह अधिनियम एक सिविल कानून है और अधिनियम के उल्लंघन के मामले में असाधारण मामलों केवल गिरफ्तारी हो सकती है.
- फेमा, भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिक पर लागू नहीं होती है.
फेमा को विदेशी मुद्रा लेनदेन में आसानी लाने के लिए अधिनियमित किया गया है क्योंकि भारत में विदेशी निवेश के माध्यम से भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक हैं.
अधिनियम में निर्दिष्ट विदेशी लेनदेन के लिए आरबीआई से अनुमति की आवश्यकता वाले कुछ लेन-देन में शामिल हैं:
- किसी ऐसे व्यक्ति के साथ विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति का लेन देन करना या अंतरित करना जो अधिकृत व्यक्ति नहीं है;
- भारत के बाहर निवासी किसी व्यक्ति को या उसके क्रेडिट के लिए किसी भी तरीके से कोई भुगतान करना;
- चालू खाता लेनदेन पर उनके लिए उचित प्रतिबंध हैं जबकि विदेशी मुद्रा को किसी भी अधिकृत व्यक्ति से पूंजी खाता लेनदेन के लिए बेचा या खरीदा जा सकता है.
आरबीआई द्वारा रखे गए कुछ प्रतिबंधों में शामिल मामले :
भारत के बाहर रहने वाले किसी भी व्यक्ति को किए गए किसी भी विदेशी सुरक्षा को स्थानांतरित करना.
भारत के निवासी होने वाले किसी भी व्यक्ति को किए गए किसी भी विदेशी सुरक्षा को स्थानांतरित करना .
भारत के बाहर रहने वाले व्यक्ति के लिए भारत में किसी भी शाखा, कार्यालय या एजेंसी को किसी भी विदेशी सुरक्षा को स्थानांतरित करना.
अज्ञात नाम के तहत विदेशी मुद्रा उधार लेना और उधार देना.
भारत के बाहर रहने वाला व्यक्ति और भारतीय निवासी के बीच रुपये के मूल्य के तहत उधार लेना और उधार देना.
एक गैर आवासीय भारतीय और एक भारतीय निवासी के बीच जमा के सभी रूप.
मुद्रा या मुद्रा नोट्स का आयात या निर्यात.
आरबीआई के पास भारत में किसी भी प्रतिष्ठान को प्रतिबंधित या विनियमित करने का अधिकार है जो मूल रूप से किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए भारत के बाहर रहने वाले व्यक्ति द्वारा आयोजित किया जाता है. भारत में किसी भी सामान या सेवाओं को निर्यात करने में सक्षम होने से पहले व्यक्ति को निम्नलिखित का पालन करना आवश्यक है:
आरबीआई द्वारा निर्धारित फॉर्म के अनुसार घोषित करना जिसमें माल के सही और सही विवरण शामिल हैं, माल का पूरा निर्यात मूल्य या वर्तमान बाजार स्थितियों पर विचार करने वाले निर्यातक द्वारा निर्धारित मूल्य.
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्यात की जाने वाली सभी जानकारी को निर्यात करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि निर्यात की प्राप्ति निर्यातक द्वारा की गई है.
फेमा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि केवल अधिकृत व्यक्तियों को विदेशी मुद्रा या विदेशी सुरक्षा में सौदा करने की अनुमति है. ऐसे अधिकृत व्यक्ति केवल अधिकृत डीलर, मुद्रा परिवर्तक, ऑफ-किनारे बैंकिंग इकाई या किसी अन्य व्यक्ति को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिकृत किया जा सकता है. विदेशी मुद्रा से निपटने वाला कोई अन्य व्यक्ति फेमा के तहत दंड के लिए उत्तरदायी होगा.
(Lawzgrid – इस लिंक पर जाकर आप ऑनलाइन अधिवक्ता मुहैया कराने वाले एप्लीकेशन मोबाइल में इनस्टॉल कर सकते हैं, कोहराम न्यूज़ के पाठकों के लिए यह सुविधा है की बेहद कम दामों पर आप वकील हायर कर सकते हैं, ना आपको कचहरी जाने की ज़रूरत है ना किसी एजेंट से संपर्क करने की, घर घर बैठे ही अधिवक्ता मुहैया हो जायेगा.)