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निवेश की निगरानी और समीक्षा

निवेश की निगरानी और समीक्षा

चीनी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की जाँच में सख्ती

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने विदेशी निवेश से जुड़े संरक्षक बैंकों को चीन से आने वाले विदेशी निवेश की निगरानी में वृद्धि करने को कहा है। सेबी ने भारतीय कंपनियों में चीनी नागरिकों या संस्थाओं के निवेश को रोकने के लिये ये निर्देश जारी किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • सेबी ने संरक्षक बैंकों से चीन और हाॅन्गकाॅन्ग के साथ 11 अन्य एशियाई देशों से भारतीय कंपनियों में किये गए ‘विदेशी पोर्टफोलियो निवेश’ (Foreign Portfolio Investment- FPI) का विवरण मांगा है।
    • निवेश के क्षेत्र में संरक्षक बैंक या कस्टोडियन बैंक (Custodian Bank) से आशय उन वित्तीय संस्थाओं से है, जो चोरी या धोखाधड़ी जैसे नुकसानों को कम करने के लिये ग्राहक की प्रतिभूतियों को सुरक्षित रखने का कार्य करती हैं।
    • कस्टोडियन बैंक प्रतिभूतियों और अन्य संपत्तियों को इलेक्ट्रॉनिक या भौतिक रूप में सुरक्षित रखता है।
    • स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, स्टेट स्ट्रीट बैंक एंड ट्रस्ट और स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, आदि भारतीय कस्टोडियन बैंक के कुछ उदाहरण हैं।
    1. यदि इन फंड्स का नियंत्रण चीनी निवेशकों द्वारा किया जा रहा है।
    2. यदि फंड का संचालक चिन्हित 13 देशों से सक्रिय है।
    3. यदि फंड का लाभांश प्राप्त करने वाले निवेशकर्त्ता चिन्हित 13 देशों से संबंधित हैं, आदि।

    विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

    (Foreign Portfolio Investment- FPI)

    • FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है, जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है।
    • FPI के तहत निवेशक शेयर निवेश की निगरानी और समीक्षा के लाभांश या ऋण पर मिलने वाले ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त करते हैं।
    • FPI में निवेशक ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ के विपरीत कंपनी के प्रबंधन (उत्पादन, विपणन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता है।
    • भारत में विदेशी निवेशकों को FPI के तहत किसी कंपनी में 10% तक के निवेश की अनुमति दी गई है।

    FPI पर सेबी की सख्ती का कारण:

    • COVID-19 की महामारी तथा इसके प्रसार के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण देश में व्यावसायिक गतिविधियों में कमी आई है जिससे कई कंपनियों के शेयर की कीमतों में काफी गिरावट हुई है।
    • ध्यातव्य है कि हाल ही में भारत सरकार ने COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘ अवसरवादी अधिग्रहण (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से FDI हेतु सरकार की अनुमति को अनिवार्य कर दिया था।
    • सेबी द्वारा FPI के तहत विदेशी निवेश की जाँच निवेश की निगरानी और समीक्षा करने का उद्देश्य सरकार द्वारा भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ को रोकने की पहल को मज़बूत करना है।
    • वर्तमान में पोर्टफोलियो निवेश निवेश की निगरानी और समीक्षा के संदर्भ में किसी विशेष प्रतिबंध के अभाव में चीनी संस्थाएँ भारतीय कंपनियों में 10% तक शेयर खरीद सकती है।
    • पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कंपनियों में चीन से होने वाले निवेश में भारी वृद्धि हुई है, वर्तमान में चीन के 16 विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की निगरानी और समीक्षा निवेशक भारत में पंजीकृत हैं और इनका शीर्ष भारतीय स्टॉक में निवेश लगभग 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
    • गौरतलब है कि FDI का विनियमन वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) द्वारा और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का विनियमन सेबी द्वारा किया जाता है।

    वैश्विक परिदृश्य:

    • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर COVID-19 की महामारी के कारण भारत की ही तरह विश्व के कई अन्य देशों में भी उद्योगों निवेश की निगरानी और समीक्षा और व्यावसायिक संस्थानों को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • पिछले दो महीनों में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्पेन जैसे देशों ने खराब आर्थिक स्थिति के बीच विदेशी निवेशकों द्वारा स्थानीय कंपनियों के द्वेषपूर्ण या अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिये विदेशी निवेश की नीतियों में सख्ती की है।
    • वर्तमान आर्थिक चुनौतियों के बीच स्थानीय कंपनियों के हितों की रक्षा के लिये यूरोपीय संघ ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किये हैं और इटली ने भी कमज़ोर/संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश को सीमित किया है।
    • अमेरिका (USA) में पहले से ही एक ‘इंटर एजेंसी कमिटी’ (Inter-Agency Committee) विद्यमान है जो विदेशी अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा करती है।

    लाभ:

    • वर्तमान में COVID-19 की चुनौती के दौरान FPI की निगरानी के संदर्भ में सेबी की पहल से भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण की गतिविधियों को रोकने में सहायता प्राप्त होगी।
    • हाल के वर्षों में चीनी निजी क्षेत्र के निवेशकों व संस्थाओं द्वारा भारतीय कंपनियों में बड़ा निवेश कई मामलों में चिंता का कारण बना हुआ था क्योंकि चीन की निजी कंपनियों और चीनी सरकार द्वारा संरक्षित कंपनियों में अंतर करना बहुत ही कठिन है।
    • भारत में चीनी निवेशकों द्वारा किये गए निवेश का एक बड़ा भाग मोबाईल और इंटरनेट जैसे क्षेत्रों से संबंधित है, वर्तमान में इस क्षेत्र में बदलती तकनीकी एवं कठोर कानूनों के अभाव में लोगों की निजी जानकारी और अन्य निवेश की निगरानी और समीक्षा ज़रूरी डेटा की सुरक्षा का खतरा उत्पन्न हुआ है, ऐसे में यह आवश्यक है कि विदेशी निवेश की बेहतर जाँच कर इंटरनेट निवेश की निगरानी और समीक्षा तथा डेटा क्षेत्र की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

    चुनौतियाँ:

    • विशेषज्ञों के अनुसार, मात्र निगरानी प्रक्रिया में सख्ती से कंपनियों की निवेश प्रकिया में व्याप्त कमियों को दूर नहीं किया जा सकता है।
    • FDI पर सरकार की सख्ती के बाद FPI के संदर्भ में सेबी द्वारा जारी निर्देशों में अस्पष्टता के कारण निवेशकों में तनाव बढ़ेगा और इससे विदेशी निवेश में गिरावट आने की संभावना है।

    निष्कर्ष:

    भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से आने वाले FDI के लिये सरकार की अनुमति को अनिवार्य बनाए निवेश की निगरानी और समीक्षा जाने के बाद, FPI की जाँच में वृद्धि के सेबी के निर्देश से, COVID-19 महामारी के दौरान, भारतीय कंपनियों के कम मूल्य पर अधिग्रहण के प्रयासों पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। साथ ही इन प्रावधानों से भारतीय बाज़ार में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप की बेहतर निगरानी भी की जा सकेगी। परंतु निवेश संबंधी नियमों में सख्ती से चीन के साथ अन्य देशों से आने वाले विदेशी निवेश में कमी आ सकती है अतः सेबी को जल्द ही निवेशकों के बीच इन प्रावधानों को स्पष्ट करना चाहिये जिससे आवश्यक कानूनी प्रक्रिया को अपनाते हुए विदेशी निवेश को जारी रखा जा सके।

    आईटी पर निवेश की निगरानी करेगी सरकार

    आईटी पर निवेश की निगरानी करेगी सरकार

    रायपुर । छत्तीसगढ़ की सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवाओं में निवेश की नीति से जुड़े मुद्दों के पर्यवेक्षण, निगरानी और उनका समाधान करने के लिए राज्य सरकार ने एक सशक्त समिति गठित की है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित इस समिति में वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव व सचिव, वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव या सचिव, राजस्व सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव या सचिव व चिप्स के मुख्य कार्यपालन अधिकारी सदस्य के रूप में शामिल किए गए हैं।

    आधिकारिक जानकारी के मुताबिक यह सशक्त समिति ई-गवर्नेंस व सूचना प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवा व्यापार से संबंधित संस्थाओं जैसे- नैस्कॉम, एसटीपीआई, निजी आईटी पार्कों, भारतीय प्रबंध संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, एनआईएसजी, एनईजीडी अथवा ऐसे अन्य किन्हीं व्यक्तियों को आमंत्रित कर सकेगी या उनसे परामर्श कर सकेगी। समिति विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श कर निर्णय भी लेगी। समिति नीति के क्रियान्वयन के संबंध में योजना का अनुमोदन, निगरानी और निष्पादन योजना पर नियंत्रण और समय-समय पर समीक्षा करेगी। इसके अलावा 100 करोड़ रुपए से अधिक के बड़े निवेश के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन व रियायत की अनुशंसा भी करेगी। एकल खिड़की समाशोधन प्रणाली की निगरानी, अंतर्विभागीय मुद्दों का समाधान, नीति से संबंधित या समय-सीमा के विस्तार व छूट, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं में इच्छुक उद्यमियों द्वारा व्यवसायिक गतिविधियों को प्रारंभ करने के लिए राज्य में सभी वैधानिक अपेक्षाओं को तीस दिन के भीतर पूर्ण करने पर एकल पंजीयन जारी किया जाएगा। आईटी नीति के संबंध में सशक्त समिति के सभी निर्णय अंतिम होंगे और राज्य में निवेशकों सहित सभी संबंधितों पर बंधनकारी होंगे। इस समिति की बैठक प्रत्येक तीन माह में कम से कम एक बार या आवश्यकतानुसार उसके पूर्व आयोजित की जाएगी। प्रदेश में एक नवंबर 2013 से सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवाओं में निवेश की नीति 2012-17 प्रभावशील है।

    समाप्त हो नियामकीय पक्षपात

    निवेश में विविधता पोर्टफोलियो मैनेजमेंट (निवेश सूची प्रबंधन) का एक सबसे आधारभूत सिद्धांत है। सदैव ऐसी सलाह दी जाती है कि एक ही शेयर या परिसंपत्ति वर्ग में पूरी रकम निवेश नहीं की जानी चाहिए। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निवेशक विभिन्न स्तरों पर अपने निवेश में विविधता बनाए रखना चाहते हैं। यह विविधता निवेश के लक्ष्य, इसकी समय अवधि, विभिन्न साधनों एवं परिसंपत्तियों में निवेश की गई रकम और पोर्टफोलियो के आकार पर निर्भर करती है। निवेश निवेश की निगरानी और समीक्षा के लक्ष्य के अनुसार निवेश में विविधता से लंबी अवधि के बाद अधिक प्रतिफल अर्जित करने में भी सहायता मिलती है। विभिन्न परिसंपत्तियों के अतिरिक्त निवेशक दूसरे देशों में भी निवेश करते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय वित्तीय बाजारों में अरबों डॉलर मूल्य की रकम आती-जाती रहती है। चूंकि , भारत में पूर्ण मुद्रा परिवर्तन नहीं होता है इसलिए निवेशक विदेश में एक निश्चित सीमा तक ही निवेश कर सकते हैं।

    भारत में नियामकीय ढांचे में सुधार की प्रक्रिया सतत चल रही है। इस महीने के शुरू में नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के इंटरनैशनल एक्सचेंज में घरेलू निवेशकों को अमेरिका स्थित कंपनियों के शेयरों में कारोबार शुरू करने की सुविधा मिल गई। शुरू में आठ बड़ी कंपनियों के शेयरों में कारोबार की अनुमति होगी और इनकी संख्या जल्द ही बढ़कर 50 तक हो जाएगी। जो निवेशक शीर्ष अमेरिकी कंपनियों में निवेश करना चाहते हैं और जिन्हें इस क्रम में विदेशी ब्रोकरेज कंपनियों से निपटना पड़ता है उनके लिए यह सुविधाजनक हो जाएगा। यह प्रगति स्वागत योग्य है मगर बात जब म्युचुअल फंडों की आती है तो नियामकीय ढांचा पक्षपातपूर्ण लगता है। इस वर्ष के शुरू में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्युचअल फंड कंपनियों को विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश निलंबित रखने की सलाह दी थी। सेबी को आशंका थी कि कुल निवेश 7 अरब डॉलर की सीमा छू लेगा। इस सलाह के बाद विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले म्युुचुअल फंडों ने निवेश रोक दिया। एक म्युचुअल फंड कंपनी अपनी एक योजना के तहत अपने कोष का कुछ हिस्सा विदेशी शेयरों में निवेश करती है। कंपनी ने इस योजना की पेशकश करने का निर्णय लिया है मगर फिलहाल वह केवल घरेलू बाजार में ही निवेश करेगी। अधिकतम निवेश की सीमा बढऩे के बाद यह पोर्टफोलियो में आवश्यक बदलाव लाएगी। यह स्थिति खेदजनक है और स्पष्ट रूप से अत्यधिक नियामकीय सक्रियता का नतीजा लगता है। यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों उक्त सीमा की समीक्षा नहीं की गई है। ऐसा तब है जब सभी को ज्ञात है कि घरेलू निवेशक इससे प्रभावित होतेे हैं।

    पिछले कई वर्षों के दौरान म्युचुअल फंड उद्योग, निवेशकों की संख्या, बाजार का आकार और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत का जुड़ाव बढ़ा है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए तत्काल समीक्षा की जरूरत है और निवेश की सीमा इस तरह तय की जानी चाहिए ताकि इसमें नियामकीय एवं आर्थिक हालत परिलक्षित हो सकें। यह समझ से परे है कि भारतीय नियामक खासकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) क्यों इस दिशा में कदम नहीं उठा पा रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ी अनिश्चितता के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अधिक होने से मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव से होने वाले वित्तीय जोखिम कम असर डालते है। विदेशी मुद्रा भंडार के मामले निवेश की निगरानी और समीक्षा में भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है। भारत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा हो रही भारी बिकवाली कम करने के उपाय नहीं कर रहा है जिससे रुपये में ह्रास हो रहा है। इसका अपना एक वाजिब कारण है। आरबीआई भी सोच-समझकर लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (उदार संप्रेषण योजना) के तहत सीमा घटाने पर विचार नहीं कर रहा है। इन बातों के परिप्रेक्ष्य में म्युचुअल फंडों के माध्यम से विदेशी शेयरों या परिसंपत्तियों में निवेश करने वाले निवेशकों के साथ अलग व्यवहार का कोई आधार नजर नहीं आता है। अगर चिंता की वजह निवेश का स्तर है तो अलग-अलग निवेशकों के निवेश पर आसानी से निगरानी रखी जा सकती है क्योंकि म्युचुअल फंड में होने वाले सभी निवेश स्थायी खाता संख्या (पैन) से जुड़े होते हैं। अत: सेबी और आरबीआई दोनों को वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए और नियामकीय पक्षपात समाप्त करना चाहिए।

    वित्त पोषण कोरल रीफ संरक्षण और प्रबंधन: संरक्षण ट्रस्ट फंड और प्रभाव निवेश

    मछली मेक्सिको निक पोलान्स्की

    प्रवाल भित्तियाँ मानवता को अत्यधिक आर्थिक मूल्य प्रदान करती हैं और दाताओं, परोपकारियों और सरकारों से अधिक ध्यान आकर्षित कर रही हैं। इस वेबिनार ने कोरल रीफ संरक्षण का समर्थन करने के लिए संरक्षण ट्रस्ट फंड और प्रभाव निवेश के उपयोग की खोज की। संरक्षण ट्रस्ट फंड (सीटीएफ) निजी, कानूनी रूप से स्वतंत्र संस्थान हैं जो जैव विविधता संरक्षण के लिए स्थायी वित्तपोषण प्रदान करते हैं। इम्पैक्ट इन्वेस्टिंग वित्तीय रिटर्न के साथ-साथ मापने योग्य सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पैदा करने के इरादे से कंपनियों, संगठनों और फंडों में निवेश कर रहा है। विशेष रूप से, वेबिनार ने चर्चा की कि संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सीटीएफ कोरल रीफ संरक्षण और बहाली के लिए वित्त पोषण कैसे बढ़ा सकते हैं, प्रबंधित कर सकते हैं और निवेश कर सकते हैं। वेबिनार ने यह भी समीक्षा की कि सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से कोरल रीफ क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए निवेश को कैसे प्रभावित किया जा सकता है।

    यह वेबिनार द्वारा प्रायोजित है एक नई विंडो में खुलता है अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल (ICRI), एक अनौपचारिक साझेदारी जो प्रवाल भित्ति संरक्षण के लिए नवीन वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिए संरक्षण वित्त गठबंधन के साथ सहयोग के रूप में दुनिया भर में प्रवाल भित्तियों और संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों को संरक्षित करने का प्रयास करती है।

    द्वारा प्रस्तुत: संरक्षण वित्त गठबंधन और वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के कैटी माथियास और ब्लू फाइनेंस के निकोलस पास्कल

    द्वारा प्रायोजित: OCTO (ओपनचैनल्स, द स्किमर, एमपीए न्यूज, ईबीएम टूल्स नेटवर्क) और रीफ रेजिलिएशन नेटवर्क

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